बहुत देर से सोच रहा था कि क्या शीर्षक रखूँ। फाइनली ये ग़दर शीर्षक दिमाग में भक्क से चमक उठा और हमने उसे यहाँ ला धरा।
सबको दुआ-सलाम। इतने दिन से गायब रहने के कारण दो थे- एक गोबरपट्टी में बसे अपने गाँव की यात्रा, दूसरी लौटते ही बर्फ़पट्टी© में बसे मनाली की यात्रा।
असल में बारहवीं में गणित पढ़ने के जुर्म में बी.टेक. करने की जो सजा मिली, वो माशाअल्लाह ख़त्म होने के कगार पर है। तो हमने भी सोचा कि पारी के सेकेंड लास्ट ओवर में यार-दोस्तों के साथ कहीं घूम आयें। लेकिन पता नहीं किस बीरबावन घड़ी में प्रोग्राम बनाया था! सब कुछ फ़रिया जाने के बाद निकलने के एक दिन पहले किसी ब्लूस्टार कंपनी का नोटिस आया कि आपके कॉलेज के बी.टेक. बेरोजगारों की गिनती में कुछ कमी करने के इच्छुक हैं…. चिरंतन ग्रीष्म के पश्चात सावन की पहली फुहार की तरह आई प्लेसमेंट की आकांक्षा ने आर्थिक मंदी की मार में झुलसे दारुण, दुःख विगलित हृदयों पर अपनी कृपादृष्टि फेरी तो सालों के भूखे-नंगे अनप्लेस्ड बन्धु फेशियल कराके क्लीन शेव हो अपनी-अपनी सीवी में लिखाने लगे…To Carve a Niche In Your Prestigious Organization …..
परम दलिद्दरई की घनघोर कालिमा में साक्षात भगवान अंशुमालि की तरह उदित इस दैदीप्यमान कंपनी के शुभागमन की सूचना ने 39 यायावरों की लिस्ट से 17 के पत्ते काट दिये। टूर तो कैंसिल होना नहीं था, बस पर-हेड बजट ड्यौढ़ा हो गया।
लेकिन इन सत्रह नसुड्ढों की हाय ऐसी लगी कि कस्सम से पूरा टूर सत्यानाश हो गया।
चरण १: बरेली से चंडीगढ़
बहुत आलीशान यात्रा रही। शहर से बाहर निकलते ही ग़दर ट्रैफिक जाम मिला। तीन घंटे इस जाम में ही निकल गये। उसके बाद किसी तरह भोर होते होते बिजनौर पहुँचे, तो वहाँ से चंडीगढ़ की 200 किमी की यात्रा में ‘पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि’ ड्राइवर ने 10 घंटे लगाये। कुल मिलाकर शाम के पांच बजे पंचकुला के ‘गुरुद्वारा नाढा साहिब’ पहुँचे। अब इसे हमारी Austerity Drive समझिये या बजट बचाने की कवायद, 39 से 17 होते ही सारे पड़ाव होटल से गुरुद्वारों में, और सारे रेस्त्रां-भोज लंगर में तब्दील हो चुके थे।
खैर, दर्शन करने और प्रसाद पाने के बाद चंडीगढ़ घूमने निकले तो पता चला कि सारे गार्डन बंद हो चुके हैं। बचा एक सेक्टर घूमने का कार्यक्रम तो हमें बताया गया था कि सेक्टर सेवेनटीन घूमना, और यहाँ ड्राइवर अड़ गया कि उसे सिर्फ़ सतारा घुमाने को कहा गया था। बड़ी जद्दोजेहद के बाद पता चला कि पंजाबी में सत्रह को सतारा कहते हैं।
चंडीगढ़ में प्रसिद्ध है कि शाम को राशन से पहले ठेके की दुकान खुलती है, वो भी शेष भारत से लगभग आधे दाम पर। फिर क्या था, सतारा में बस रुकते ही दिन भर के प्यासे चकोरों का झुंड लक्ष्य की तरफ भागा। स्वाति की पहली बूँद हलक के नीचे उतरी भी नहीं थी कि एक ठुल्ले (पुलिसवाले) ने सारे तृषार्त बन्धुओं को धर दबोचा। पता चला कि बेटा ये यूपी नहीं है जहाँ सड़क को शौचालय बनाओ या मधुशाला, कोई फ़िक्र नहीं। चंडीगढ़ में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्र-मदिरा-पान पर सख्ती से रोक है। इस सच्चाई से रू-ब-रू होने में बच्चों के हजार-हजार रुपये लगे। फिर तो उन्होंने कितनी भी पी, नशा हुआ ही नहीं।
जिन्हें खाना था वे खाकर, और शेष लोग पीकर आगे की यात्रा के लिये सवार हुए। यह तय हुआ, कि लौटानी में समय रहा तो चंडीगढ़ फ़िर घूमेंगे।
चरण २: चंडीगढ़ से मनाली
लगभग 350 किमी की यात्रा ड्राईवर साब ने १० घंटे में पूरा करने का वचन दिया। सड़क बहुत बेहतरीन थी। रात में अहसास ही नहीं हुआ कि बस चल भी रही है। सुबह उठने पर पता चला कि वाकई चल नहीं रही थी। सबको सोता देखकर पेचिश-आंत्रशोथ आदि बहु-बीमारी पीड़ित ड्राईवर साब ने भी चार घंटे की नींद मार ली।
हिमाचल के पहले जिले मंडी में एक ढाबे पर सुबह का नाश्ता इत्यादि करते हुए सभी शाम ५ बजे मनाली पहुँचे। भूख से आंते सिकुड़ गईं थी। होटल में नहा धोकर सब खाने-पीने निकले। लेकिन उन 17 नसुड्ढों की हाय ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। पता चला कि एक प्रागैतिहासिक मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ है, जिसके उपलक्ष्य में समूचा शहर बंद है और सभी लोग विशाल भंडारे में भोजन करेंगे। जिसे जल्दी है, या भंडारे में सड़क पर पालथी मारकर सुबह से बिखरे हुए चावल-सब्जियों के ढेर में बैठकर नहीं खा सकता, वो भूखा मरे। वा ह रे गुंडागर्दी…….
सॉफीस्टिकेटेड लड़्कियों ने अखबार दिये- बैठने को भी, बिछाने को भी। तब जाकर कहीं युगों की क्षुधा शांत हुई। पर सच्ची में, खाना कतई चीता बना था। मजा आ गया। रात्रि विश्राम हुआ। तय हुआ कि अलस्सुबह रोहतांग के लिये निकल चलेंगे।
चरण ३: मनाली से रोहतांग
मनाली से रोहतांग करीबन 55 किमी दूर है। भारत और चीन के बीच प्राचीन रेशम मार्ग (Silk Route) का एक महत्वपूर्ण पड़ाव। भारत को तिब्बत से जोड़ने वाला दरवाजा- रोहतांग दर्रा। मनाली के आगे केवल विशेष टूरिस्ट बसें, ट्रैवेलर या स्कॉर्पिओ जैसी गाड़ियाँ जाती हैं। लगभग दो घंटे का रास्ता, लगातार चलते रहे तो।
रास्ते में एक जगह भू-स्खलन की वजह से रुकना पड़ गया। जेसीबी अपना काम कर रही थी। मेरी नजर आसपास के पत्थरों पर पड़ी। स्थानीय लोग इन्हें चाँदी के पत्थर कहते हैं। बेहद चमकदार सोने-चाँदी जैसे पत्थर, और रेत भी उतनी ही महीन चमकदार। एस्बेस्टस और मैंगनीज से भरपूर। इतना ज्यादा मिनरल-कंटेंट कि पत्थर तो लगे ही नहीं। लोगों ने बताया कि अभी यहाँ कहाँ, असली खजाने तो लद्दाख में हैं। समझ में आया कि इस इलाके पर चीन की लार क्यों टपक रही है! सोचा कि एकाध पत्थर उठाकर घर ले चलूँ, लेकिन हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम इस मामले में बहुत सख्त है। यह सोचकर रख दिया कि कहीं लेने के देने न पड़ जायें।
मुख्य रोहतांग पर तो बर्फ़ के नामोनिशान नहीं थे। इससे ज्यादा बर्फ़ तो रास्ते में थी। जमे हुए झरने, नदियाँ। पता चला कि चार दिन पहले उपर के पहाड़ों पर बर्फ़ गिरी है। फिर क्या था! नि कल लिये उपर की तरफ। वहाँ बर्फ के दर्शन हुए। पर्याप्त बर्फ़ थी। दो-एक घंटे बर्फ़ के गोलों से लड़ाई भी हुई। मन अघा गया लेकिन असलहे ख़त्म नहीं हुए।
जबर्दस्त ठंड थी वहाँ। चटख धूप में भी हाथ-पैर गल रहे थे। दो-चार भाई लोगों ने मनाली से ली हुई ब्रांडी के घूँट लिये, तो बर्फ़ हाथों में आकर पिघलने लगी। अपने साथ तो यह सुविधा भी नहीं थी..
कहते हैं बी.टेक. 3 B के बिना अधूरा है। (B)ike, (B)eer, और (B)abe. वतन से इतनी दूर बाइक का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। एक मोपेड थी तो वह घर पे जंग खा रही है। दूसरी B या उसके वैरिएंट आजमाने की हिम्मत आज तक नहीं हुई। रही बात तीसरी B की तो वो अभी अंडर-कंसिडरेशन है। तो मसला ये हुआ कि हम कोई रासायनिक क्रिया तो करते नहीं इसलिये भाई लोग हर दस मिनट पर मुझे हिला-हिलाकर चेक करते रहे कि भइया हो ना…….
सारी स्नो-फाइटिंग के पश्चात वापस मनाली लौटे। रात्रि विश्राम के पश्चात सुबह वापस चंडीगढ़ लौटने का कार्यक्रम था।
चरण ४: मनाली से बरेली
यात्रा के इस चरण में सुबह छः बजे निकलकर शाम 3 बजे तक चंडीगढ़ पहुँचने का कार्यक्रम तय था। फ़िर चंडीगढ़ घूमकर रात-बिरात बैक टू पैवेलियन लौटने का कार्यक्रम था। लेकिन बुजुर्गवार ड्राईवर की कृपा से यह सब संभव नहीं हो सका। चंडीगढ़ पहुँचते पहुँचते फिर 5 बज गये। सौभाग्यवश एक पिंजौर गार्ड्न घूमने को मिल गया। और उन 1 7 नसुड्ढों की हाय फिर लगी। गुरुवार की वजह से सारे अच्छे सेक्टर बंद मिले। सो मन मसोसकर वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई। चूँकि अगले दिन एक और बुकिंग थी, इसलिये जो रास्ता जाते समय 17 घंटे में तय हुआ था, वापसी में वही चंडीगढ़-बरेली मार्ग 9 घंटे में तय हुआ। लौट के फिर वही कॉलेज, फिर वही कुंजो-क़फ़स, फिर वही सैयाद का घर…
ठेलनोपरांत: कल पता चला कि ब्लूस्टार ने जिन बच्चों को सेलेक्ट किया था, अब उनसे 25000 माँग रही है ट्रेनिंग के वास्ते। फिर उन्हे तीन महीने 10000 के भत्ते पर रखकर उनके टैलेंट को परखा जायेगा। फिर जो चीते बचेंगे, उन्हें नौकरी दी जायेगी। लब्बोलुआब ये कि वे सारे नसुड्ढ अब प छता रहे हैं कि घूम क्यों नहीं आये। हमें तो बस अटल जी की एक कविता की पहली लाइन याद आ रही है-
मनाली मत जइयो गोरी राजा के राज में..
जय हो। हम जब भी तुमको पढ़ते हैं तब लगता है कि भैये नियमित काहे नहीं लिखते। अद्भुत फ़ड़कता हुआ गद्य बांचकर मन आनन्दित हो गया। जन्मदिन की अनेकानेक मंगलकामनायें। सारे B मनचाहे मिलें तुमको। मौज करो।
बड़ा सुन्दर और विस्तृत यात्रा वृत्तांत ! पढ़, देख कर हमें भी पहाडो की याद आ गई !
जियो मेरे लाल ....हमें अपनी यामहा rx100 याद आ गयी .....कम्पनी ने अब वो मोडल बंद कर दिया है ..रोहतांग तक रास्ते में सारे ट्रक वाले ओर गाडी वाले तुम्हे कई दिनों तक याद रखेगे ...हमको याद आ गया ..गुजरात में शराब बंदी होने के कारण मिली जुली पीते थे .जब बहुत ज्यादा फ्रस्टेशन आ जाता .तो दमन कूच कर जाते .....बस थोडा तीसरे बी का एडवांटेज था .मेडिकल होने के वास्ते ...वो क्या कहते है अच्छा है इस ससुरी जिंदगी में दाखिल होने से पहले एक बड़ा सा रिचार्ज कूपन ले लिया ...वर्ना कोलेज से बाहर आकर तो जिंदगी खलास ....बीडू
वाह! जबरदस्त लिखा है।
यार, मुझसे कई लोग तुम्हारा पता और फोन नम्बर मांग रहे हैं।
लगता है अब ‘अण्डर कन्सिडरेशन’ की लिस्ट लम्बी होने वाली है।
यहाँ कोई क्लू है क्या? कुछ अता-पता बताओ प्यारे:)
कमाल का लिखते हो भाई - बिना बहके हुए. एकदम मज़ा आ गया. लगा हम ही घूम आए हैं. बहुत अच्छा लिखते रहिये.
वाह, आपके साथ हमने भी मनाली, मना ली!
@ चचा अनूप जी
आपकी भी जय हो। हम तो नियमित होने का भरसक प्रयत्न करना चाहे हैं, लेकिन ई ससुरी पढ़ाई की मोह माया छोड़े नहीं छूटती। कौनो देसी नुस्खा हो तो बतायें....
@ गोदियाल जी
आपको सुन्दर लगा, हमें अच्छा लगा....
@ अनुराग जी
आपके दमन कूच की बात थोड़ी ज़फ़र जैसी लगी..! मेडिकल में तो जन्नत है साहब। यहाँ बंसल क्लासेज और रेसनिक हैलिडे से पार पाने के बाद जो 33% XX क्रोमोसोम पहुँचते भी हैं, वे फीमेल कम, नॉन-मेल ज्यादा लगती हैं। हम तो लाइफटाइम रिचार्ज के चक्कर में पड़े हैं, लेकिन हच के छोटे रिचार्ज से ज्यादा कुछ मिलता ही नहीं....
@ सिद्धार्थ जी,
अरे संभल के। पक्का उधारी देने वाले होंगे जो पता माँग रहे हैं। रही बात मोबाइल की, तो इस ससुरे कॉलेज में 10000 रुपल्ली फाइन है पकड़े जाने पर। एक ठो ऑडिटोरियम बन गया फाइन के पैसों से। न भैया, हमें नहीं शिलापट्ट पर अपना नाम खुदवाना। छौ-सात महीना और बचा है, हरिनाम के भरोसे गुजार देंगे।
अउर लाज नहीं आती हमसे क्लू माँगते हुए। एकाध जुगाड़मेंट फिट कराइये तो अपना दश्त-ए-जीवन भी जश्न-ए-बहाँरा बने। अगर कोई मसला हुआ तो तुरंत खबर करेंगे....अंडर कंसिडरेशन
@ आत्माराम शर्मा जी
जब ली ही नहीं तो बहकेंगे कैसे..? रही बात आपके मजा आने की, तो वही उद्देश्य भी था।
क्या शैली है भाई..आनन्द आ गया टहल का. जन्म दिन की बहुत बधाई.
बिंदास लेखन!
आपको, जनमदिन की बधाई व शुभकामनाएँ
बी एस पाबला
यात्रा- वृत्तांत को कथा और लालित्य की भंगिमा से लिखना इसे सर्जनात्मक लेखन की ओर ले जाता है| वैसा ही परिदृश्य यहाँ गढा तुमने |
बधाई !!
हे ,बड़े चाव से पढता जा रहा था ,पढता जा रहा था -ये अंटी क्लाईमैक्स कैसे हो गया ? इसका उल्लेख मत कर भाई सारा रूमान काफूर हो गया -एडिट करिए लास्ट के कुछ वाक्य !
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मजे दार भाई आप की यात्रा, ओर आप की कलम ने इस लेख को ओर आप की यात्रा को ओर भी हसीन बना दिया.
धन्यवाद
लो हमें तो भ्रम था कि हमीं नॉन-मेल पोपुलेशन वो भी जो एक्सटिंक्ट प्रजाति की तरह दिख जाया करती थी के शिकार थे. ३ दिन की 'अंतराग्नि' में हम एक जीवन जी लेते थे भाई. बाकी तो अपना जीवन कोरा कागज रह गया... स्कूल तक के दिन याद आते हैं तो कोई ऐसी क्लास याद नहीं आती जिसमें कोई नॉन-मेल भी रही हो. वैसे भैये ६-७ महीने ही बचे हैं :) आगे मिस करोगे ये दिन बुरी तरह... इसकी गारंटी. सर्दियों में एक बार सिक्किम भी हो आओ. और कोशिश जारी रखो. बेब मिलेगी... पक्के मिलेगी. लक्षण तो ऐसे ही लग रहे हैं ! कॉलेज के दिन... आँखों के सामने लाखों बाते दौड़ गयी.
वाह भई वाह.. जितना कुछ कहने वाले थे वो सभी ऊपर वाले लोग कह गये हैं.. हम तो बस इतना ही पूछेंगे कि कहीं वो थर्ड बी आपके बगल में खड़ी है वो तो नहीं? उनका एक अलग से भी फोटू चस्पा किये हैं.. :D
अनूप चच्चा को तो अब चिंता होगी, क्योंकि उनका बचवा भी तो अब तीन बी के चक्कर में भागेगा.. वैसे बाईक वाला बी उसे होस्टल में रहकर नसीब नहीं होगा सो पहिले ही बताये देते हैं.. :)
@ उड़नतश्तरी जी
बधाइयों के लिये धन्यवाद!
@ पाबला जी
बहुत बहुत धन्यवाद। अपने डाटाबेस में एक एंट्री और कर लीजिये।
@ कविता जी
मैनें पूरी कोशिश की थी कि इस वृत्तांत में कोई शैली या लालित्य ढूँढने से भी न मिले। अफसोस मेरी कोशिश असफल रही। वैसे कभी यह भी बताइयेगा कि यह इल्जाम मेरे पर किन पंक्तियों की वजह से लगा!
@ अरविंद मिश्र जी
महाराज, यात्रा चार दिन की थी, दो आरजू में कट गये दो इंतजार में। अब कहाँ तक की-बोर्ड पीटूँ! वैसे किन पंक्तियों की बात कर रहे हैं आप?
@ लवली जी
धन्यवाद!
@ राज भाटिया जी
कभी बताइयेगा, दूसरे मुल्क़ की बर्फ़ भी क्या वतन की बर्फ़ जैसी ही सफेद होती है?
@ अभिषेक ओझा जी
नहीं भाई साहब, कमोबेश हर इंजीनियरिंग कॉलेज में यही सन्नाटा पसरा है। रही बात अंतराग्नि की, आपने दुखती रग पर हाथ रख दिया। तीसरे सेमेस्टर में गये थे अंतराग्नि ०७ में, कस्सम से आज भी रातों में सपने आते हैं...बाकी फिर कभी!
@ प्रशांत भाई
काहे गला फँसा रहे हैं भाई? अगर गलती से भी इस हिमास्त्रधारिणी बालिका के परिजनों ने यह कमेंट पढ़ लिया तो बकौल सिद्धार्थ जी, मेरा अता पता ढ़ूँढ़ने वालों की लिस्ट बढ़ जायेगी... ये तो वही बात हुई- आप कौन? मैं खामखा साहब!
वैसे सुकुल चच्चा का मसला बताकर आपने सही किया। लगे हाथ मौका देखकर कभी चोक लेने की कोशिश करूँगा...
kyaa cheeta yatra vritant likhi hai yaar tumne.
abhi manali ka surur utra bhi nhi tha ki
kassam se ek baar yadein phir se taza ho gayi...
from-:ANITA GUPTA
यात्रा- वृत्तांत :सर्जनात्मक लेखन,बड़ा सुन्दर और विस्तृत !!
आपको, जनमदिन की बधाई व शुभकामनाएँ
बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण लिखा है बधाई।
अमाँ, इस पोस्ट के बारे में इतना बतिया गए और टिप्पणी किए ही नहीं? हद है !
इसे क्या कहें ?
हेपेटाइटिस, लिवर कैन्सर और अन्य सारे साइन्स के आयामो से बाहर निकला......मजा आ गया...
बहुत बहुत बधायी अच्छे लेखन के लिये.
भाषा की फ़्लेक्सिबिलिटी इतनी है की पढ़ते हुये लगा की चाऊ खा रहे है ! रोचक लेखन ! पढ़ना रुचिकर रहा !
अब बांचने बैठे हैं तो सब ही बांच ले रहे हैं. लगता है ई गणित ने फंसा दिया है तुमको. ई भाषा गणित में मिलेगी? या फिर शायद वहीँ से निकलते हो. अब जहाँ से निकलते हो, मस्त है. हम बहुत प्रसन्न हो गए हैं तुम्हारा लिखा बांचकर. ऐसी ख़ुशी या तो किसी बच्चे को देखकर मिलेगी या फिर तुम्हारी पोस्ट पढ़कर.