सच्चा इस्लाम बनाम झूठा इस्लाम और चूतियों का वर्गीकरण

हमारी गँधाती राजनीति में मुल्ला मुलायम सिंह यादव जैसों के पास पूरी जौहर युनिवर्सिटी खड़े करने के पैसे हैं। लेकिन चालीस हजार संस्कृत पाठशालाओं के शिक्षकों को वेतन के नाम पर देने के लिये एक धेला नहीं है; अलबत्ता मदरसों की सालाना ग्रांट में एक से दो दिन की देरी नहीं होती। जबकि तुलना के तौर पर देखें तो पाठशालाओं में शास्त्र-स्मृति के साथ-साथ साहित्य, विज्ञान और कला भी पढ़ाई जाती है। जरा मदरसों के पाठ्यक्रम को रिवाइज करने की बात कर लीजिये- दंगे भड़क उठेंगे।

आजकल बहुत अजीब सी प्रवृत्ति देख रहा हूँ। पढ़े-लिखे मुसलमानों में भी कट्टरता व्याप्त होने लगी है। बी.टेक. कर रहे ब्राईट और प्रामिसिंग लड़के अगर पंद्रह अगस्त की सुबह नींद न खुल पाने की वजह से ध्वजारोहण में भाग न ले पायें, कोई बात नहीं, लेकिन वही शख्स अगर दिसम्बर के जाड़े में अलस्सुबह उठकर फ़ज़र की नमाज अता करने कैंपस से एक किलोमीटर दूर जाने में जरा भी न अलसाये तो ??

उसपर लोग कहते हैं कि शिशु मन्दिरों में आतंकवादी तैयार हो रहे हैं। मेरी शिक्षा-दीक्षा सरस्वती शिशु मन्दिर में हुई। संघ की शाखा में न सिर्फ़ गया हूँ, बल्कि एक शाखा का प्रशिक्षक भी रहा हूँ। स्वयंसेवक प्रशिक्षण वर्ग भी पूरा किया मैनें, और इस बात का गर्व है मुझे


लेकिन संघ की कई नीतियों से इत्तेफाक नहीं रखता हूँ। बजरंग दल, शिवसेना, श्रीराम सेना, और कभी कभी भाजपा की टुच्ची हरकतों पर जितना खून मेरा खौलता है, उतना नेट पर मौजूद इन मौलानाओं का नहीं खौलता होगा, मुझे इस बात का पूरा यकीन है। मुझे कोई तकलीफ़ नहीं होती यह बताने में, कि मेरे दोस्त उमैर की माँ मेरी माँ से अच्छी दाल बनाती हैं। मुझे उसके मुँह का निवाला छीनकर खाने में भी कोई गुरेज नहीं, क्योंकि मजहब से पहले मुल्क़ के बारे में वह भी सोचता है, मैं भी।

बीस दोस्त सर्दियों में वैष्णो देवी जाने का कार्यक्रम बनाते हैं। उनमें से एक जुनैद अहमद भी है.. शायद सबसे ज्यादा रोमांचित। इससे पहले कइयों के साथ पूर्णागिरि माता के दरबार भी जा चुका है।

होली में गाँव के शिवाले में आनन्दमग्न इजहार मुहम्मद के हाथों की थाप जब ढोलक पर पड़ती है, और मुँह से बोल फूटते हैं..”सिरी गिरिराज किसोरी, श्याम संग खेलत होरी”, तो वह मेरी नजर में तोगड़िया और उमा भारती जैसों से लाख दर्जे उपर उठ जाता है। बावजूद इसके कि वह पाँच वक्त का पक्का नमाजी है। इन्हीं जैसे मुसलमानों की जान बचाने के लिये मेरे पिता के नेतृत्व में ‘बाँसपार मिश्र’ गाँव के लोग योगी आदित्यनाथ और हिन्दू युवा वाहिनी के काफिले के सामने सीना तानकर खड़े हो जाते हैं। बावजूद इसके कि योगी के प्रखर राष्ट्रवाद के सभी कायल हैं, बावजूद इसके कि इजहार की ही क़ौम के किसी पिशाच ने 12 साल की बच्ची…………

लखनऊ महोत्सव 2005 में अहमद हुसैन-मुहम्म्द हुसैन बन्धुओं का कंसर्ट सुनने पहुँचता हूँ। चार घंटे दिसम्बर की ठंडी रात में ओस में भीगते हुए— “चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल” जितना असर छोड़ता है, उससे कहीं ज्यादा तब, जब वे कंसर्ट की शुरुआत करते हैं गणेश वन्दना से- “गाइये गणपति जग वन्दन”। कंसर्ट के बाद मैं ऑटोग्राफ़ लेने के लिये अपनी डायरी आगे करता हूँ। हुसैन बन्धु अचकचा जाते हैं- उन्हें आदत नहीं है इसकी। अहमद हुसैन निरक्षर हैं, मुहम्मद को सिर्फ़ अपना नाम लिखने आता है, वह भी उर्दू में। पूछता हूँ- गणेश वन्दना कैसे पढ़ पाते हैं! बेहद शर्मीले अहमद हुसैन मुस्कराकर जवाब देते हैं- फारसी लिपि में लिखकर मुहम्मद ने याद किया, उन्हें करवाया।

ग़ुलाम अली हाजी हैं, लेकिन एक बार शराब जरूर पीते हैं- किसी कंसर्ट में कालजयी “हंगामा है क्यूँ बरपा” गाने से पहले। पूछने पर कहते हैं- बिना सुरूर के यह ग़ज़ल ऑडियंस को चढ़ेगी नहीं..। ग़ज़ल की शुरुआत में यह भी जोड़ देते हैं- “जाम जब पीता हूँ, तो मुँह से कहता हूँ बिस्मिल्लाह/ कौन कहता है कि रिन्दों को ख़ुदा याद नहीं”

स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ पाँच वक्त के पक्के नमाजी होने बावजूद संकटमोचन और बाबा विश्वनाथ के प्रेम में अपने सुर-पुष्प अर्पित कर सकते हैं, मौलाना कल्बे सादिक़ कुम्भ में डुबकी लगा सकते हैं, कलाम साहब गीता पढ़ सकते हैं तो आम भारतीय मुसलमान अपने चहक चूतिये* उलेमाओं (उल्लूमाओं) के चूतड़ों पर चार लात जमाकर एक समरस समाज की संकल्पना में भागीदार क्यों नहीं हो सकते? उनका इस्लाम कहाँ खतरे में पड़ जाता है?

मुझे कल्बे सादिक़ के भारतीयत्व पर कोई शक़ नहीं, शक़ है इन इस्लाम के रहनुमा बने हाजी याक़ूब क़ुरैशी, अन्तुले और रूबिया सईद जैसों पर।

रही बात ब्लॉगजगत की, तो सारा गुबार बस इतने से ही निपटाना चाहूँगा कि तीन ठलुओं की किताबें ‘स्क्रिब्ड’ पर अपलोड कर, मरे हुओं के इस्लाम कुबूलने की खबरें छापकर और किसी सनकी (खल)नायक की रटन्तु विद्या को यहाँ वहाँ से कॉपी-पेस्ट कर डालने से इस्लाम का घंटा भला नहीं होगा, इस्लाम का सच्चा भला चाहते हैं तो सहिष्णुता सीखें, अपने पिछड़े-अनपढ़ भाइयों को दुनियावी तालीम दें, और देश को मजहब से पहले रखना सीखें। और इतना जरूर याद रखें-

इन फ़सादात को मजहब से अलग ही रखो

क़त्ल होने से शहादत नहीं मिलने वाली


ठेलनोपरांत:

#1: यहाँ पर चूतियों का तीन प्रकार से वर्गीकरण किया गया है-

A) चहक चूतिया: जिसकी बातों से चुतियापा टपकता हो।

B) चमक चूतिया: जिसकी शक्ल से ही चूतियापा झलकता हो।

C) चटक चूतिया: जिसके अंग-प्रत्यंग में चूतियाप व्याप्त हो।

#2: जब यह पोस्ट पब्लिश होगी, तब मैं अपनी अग्रजा शाम्भवी के शुभ विवाह में व्यस्त हूँगा, अस्तु किसी प्रश्न-प्रतिप्रश्न का उत्तर नहीं दे पाऊंगा। आपसे निवेदन है कि प्लेटॉनिक आमंत्रण स्वीकार करें, तथा नवदम्पति को शुभाशीष दें- “अजितशाम्भवीभ्याम सर्वान देवान शुभाकरान


27 Responses
  1. क्या कहें ??? मन की कथा -व्यथा उड़ेल कर रख दी? कोई अंतिम उपाय किसी के पास ???????


  2. .......और इस पर घोड़े का फेहेल्मेन इक्स्प्रेसन(Flehmen response )सटीक तुर्रा है !


  3. वारे गए इस तेवर पर!
    इंजीनियरिंग हॉस्टल की बातें तो कॉमन हैं। 3 प्रकार का वर्गीकरण तो भई हमारी लिंग्वा फ्रैंका का अंग रहा है ;)
    आगे जो लिखने लगूँगा वो जान ही रहे हो सो नहीं लिख रहा... दुहराव का भय :)
    जन्मदिन एक हो तो क्या सचमुच... ?

    शुभाशीष - अजितशाम्भवीभ्याम सर्वान देवान शुभाकरान


  4. .
    .
    .
    वाह कार्तिकेय वाह,
    जेन-नेक्सट के इन तेवरों से आश्वस्त हुआ जा सकता है कि हम अभी भी सही राह पर हैं, पर तुम्हारे और मेरे मजहब में भी तो कमी नहीं तीनों तरह के चू_यों की... इन पर भी इसी तरह आग उगलती कलम चलाओ तो हिम्मत दिखेगी तुम्हारी, और निष्पक्षता भी... आईना दिखाओ तो सबको... बिना किसी धर्म-लिंग भेद के...

    अजित और शाम्भवी को आशीष व शुभकामनायें।


  5. प्रिय कार्तिकेय,

    आपकी समझ परिपक्व है विचारों में भी सुलझाव है मगर ड्राइविंग रैश करते हो । समय सबको सिखाता है अपवाद तुम भी नहीं होगे । बेटा तीखी से तीखी बात परिशोधित भाषा में भी कही जा सकती है ...ऐसे शब्दों का प्रयोग न तो आलेख को चमकदार बना सकता है और न अपनी भाषा को उचित संस्कार दे सकता है । परिस्थितियों के प्रति क्षोभ ज़रूरी है पर भाषा को भद्दी मत होने दो । आपके तेवर देश का और हिन्दुत्व का भला कर सकते हैं । दीर्घायु भव, यशस्वी भव । अजित और शाम्भवी को आशीष व शुभकामनाएँ।


  6. आपने बहुत अच्छे ढंग से बात रख दी है। शाबास...!

    इस देश में हर बात और विचारधारा की छूट है। जो जैसा चाहे बोल सकता है और जैसे चाहे रह सकता है। इसी सुविधा का लाभ सभी उठा रहे हैं। जिसके पास जैसी बुद्धि है और जैसा संस्कार है उसके अनुसार ही वह अपना जीवन ढाल रहा है। हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धारणा वाले... कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अच्छे बुरे सभी ओर मिल जाएंगे।

    ईश्वर यह जरूर देखता है कि दुनिया में तमीज का सम्मान होता रहे (prevalence of better sense) और दुष्टों का समय-समय पर सफाया होता रहे। हमें आशावादी होना चाहिए। आपका यह आलेख इसी आशा को मजबूत बनाता है।


  7. Anonymous Says:

    चमक चूतिया: जिसकी शक्ल से ही चूतियापा झलकता हो


    कई दफा मूर्खता चेहरे से झलकती है और कई दफा बोली-बर्ताव से। कई मूर्ख अगर मुंह न खोलें तो बेहद ज़हीन और अक्लमंद नज़र आते हैं। कई मूर्ख जैसे दिखनेवाले लोग जब बोलते हैं तब एहसास होता है कि इन्हें समझने में भूल हुई है।


    कई जानकार और समझदार लोग सिर्फ चेहरे के कारण कमअक्ल समझ लिए जाते हैं. कई दफे कितने ही विद्वानों को इसीलिए दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ा क्योंकि वे चेहरे से बेवकूफ नज़र आते थे या उनकी शक्ल 'बुद्धिमानों जैसी' नहीं थी.


  8. भई आप का लेख बहुत अच्छा लगा, सभी बाते खुल कर लिखी, ओर यह फ़ोटू भी जोरदार लगाया. धन्यवाद


  9. सही है। हिन्दुत्व तो उदात्त होना चाहिये।



  10. सन्जय Says:

    प्रियवर, गजब का लिखते हो ! शाम्भवी एवम अजीत को तथा दोनो परिवार को हार्दिक बधाई १


  11. hi bro , very nice post , it was full of humor , and u r very clear in your mind , keep it up .


  12. i m too from r.s.s and an engineering student , and me too write blogs , so come share some of ur thoughts on my blogs .


  13. PD Says:

    likhe ho bhai.. jam kar likhe ho, aur chha gaye..
    mere dil ki baat likh diye.. apna ek dost yaad aa gaya jo abhi abhi delihi shift ho gaya hai(Afroz).. use ab chennai me bahut miss karunga.. kyonki ab diwali vo hamare saath nahi mana payega aur id me hame sewaiyan kaun khilayega?


  14. बहुत गुस्से में हो इन दिनों भाई........वैसे ऊपर लिखी किसी सज्जन की बात पे गौर करो.....कभी कभी शानदार लेख भी भाषा के अधिक तल्ख़ होने से एक सार्थक बहस की ओर मुड़ने से रह जाते है .तुममे एक प्रतिभा है ....ओर मुझे तुमसे उम्मीदे भी है .आशा है वापसी में मेरी बात पे गौरकरोगे


  15. PaNtAlOoON'S Says:

    awesome, angrezi me yehi shabd dhyaan me aata hai, aur hindi me vaichaarik pratikriya k liye jagah kam pad jaaegi, sach me shayad aaj kay samajik dangon ka kaaran sidhant nahi balki chootiyap hii hai


  16. satya ka satyata se atyant prabhavshali ullekh aur CHUTIYON ke vargikaran ki to bat hi kya .....

    niymit pathak hun parantu vyastata ka bahana de kabhi kuchh likh na saka parantu aj hath rok na saka................



    age bhi isi prakar prabhavshali va janjagruktapurn samasayon pr apke vicharon ke liye ashanvit rahunga............


    amish03@gmail.com


  17. rajat Says:

    sir,
    you have written good no dought,but it might be possible that ur friend who wrake up in december ()in early morning might have someother reasons to go outside the campus.
    ur frind who didnot went to vaishno devi might have some personal problems(might be physical) which only he knows


  18. rajat Says:

    i think that every person has some problems which he do not want to share with others..........
    that is why u should incorporate those things and must understand the feelings.
    rajat


  19. शिशु मन्दिर मे हम भी पढे . संघ मे हम भी रहे . कभी फ़ुर्सत हो तो मिले


  20. Unknown Says:

    kartikeya ji aapke ye lekh islam aur islam ke anuyayion ke vishay me ek svatantra bharat ke sacche nagrik ki pehchan hai
    accha likhte hai....
    jaari rakhiyega.


  21. @ प्रवीण त्रिवेदी जी

    अंतिम उपाय हमारे-आपके पास ही है, परन्तु हम आजमाते नहीं... हर ग़लत बात का विरोध, हर हक़ बात की हौसला अफज़ाई..


    @ अरविन्द मिश्र जी

    हमने तो ये फोटू ऐंवैई चेंप दी थी.. आप भी कहाँ-कहाँ से जानकारियाँ बटोर लाते हैं.. चलिये ज्ञान में वृद्धि हुई।


    @ गिरिजेश राव जी

    हॉस्टल की बातें तो कॉमन होती हैं... कभी-कभी तो बड़ी सेंसरशिप करनी पड़ती है, कि बात सही भाषा में सही लोगों तक पहुँच जाये और असली मज़ा भी बचा रहे..


    @ प्रवीण शाह जी

    भगवान ने तो चू_यों को बिना रंग-धर्म-जाति-लिंग-क्षेत्र भेद के समानतापूर्वक विभाजित किया है.. निस्संदेह हमारे आपके मजहब में भी असंख्य चू_ये हैं। निश्चिंत रहिये उनकी भी खबर ली जायेगी।


    @ DIVINE PREACHINGS जी

    मेरे शब्द-प्रयोग से आपको दु:ख हुआ, इसके लिये मुझे खेद है... परन्तु सभ्यता के नाम पर हम भारतवासी आज तक हर विदेशी आक्रांता से जो लात खाते आये हैं, उसका क्षोभ भी। यही वजह है कि ऐसी भाषा न चाहते हुए भी प्रयोग करनी पड़ती है। अस्तु मैं अपने शब्दों के लिये तो खेद प्रकट कर सकता हूँ, परन्तु अपने विचारों के लिये नहीं.. आपके सतत आशीर्वाद व मार्गदर्शन की कामना रहेगी।


    @ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी

    आपकी बात से शत-प्रतिशत हूँ। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोजों में से एक है.. एक यही माध्यम तो है जिसके जरिये हमारे जैसे अप्रोच-विहीन लोग अपनी बात रखकर संतोष पाते हैं, भले ही कोई उसे पढ़े या नहीं, भले ही इसका असर हो या नहीं..


    @ ab inconvenienti जी

    नि:शब्द हूँ.. इतना गहरे तो कभी सोचा न था। हाँ, इतना जरूर है, कि अपवाद सब जगह हैं।


    @ राज भाटिया जी, ज्ञानदत्त जी, वीरेन्द्र जैन जी, सन्जय जी, time for change जी,

    आप सबका मेरी हौसला अफज़ाई के लिये धन्यवाद


    @ प्रशांत भाई

    बात वही है.. एक सच्चा दोस्त- चाहे वह उमैर हो, या अफरोज़। ऐसा वक़्त न आये कि चंद लोगों के चलते इस दोस्ती में भी एक दूसरे से नज़र मिलाने में हमें कतराना पड़े।


    @ डॉ० अनुराग जी

    बहुत तो नहीं, हाँ थोड़े से ज्यादा ग़ुस्से में जरूर हूँ, और उसका कारण भी स्पष्ट कर दिया है मैनें। आपसे बहुत कुछ सीखा है, अफसोस अपनी क़लम पर काबू रखना नहीं सीख पाया.. आपको मुझसे आशायें हैं, अपनी कूबत भर आपको निराश न होने देने का प्रयत्न और आगे से स्वयं को संयत रखने की पूरी कोशिश करूँगा।


    @ PaNtAlOoON'S

    एकदम सही बात.. दंगों का कारण मज़हबी सिद्धांत नहीं, बल्कि चू_याप है।


    @ अमीष

    नियमित पाठक हो, जानकर सुखानुभूति हुई। बहुत कुछ सीखने के लिये इतस्तत: बिखरा पड़ा है हिन्दी के इस आभासी जगत में.. मैं भी सतत सीखने की प्रक्रिया से गुजर रहा हूँ..
    एक बात याद रखो.. सच बात की तारीफ में भले ही कुछ न कहो, लेकिन गैरवाज़िब बात की पुरजोर खिलाफ़त करो। उम्मीद करता हूँ कि तुम्हारी प्रतिभा बहुत जल्द इस ब्लॉग पटल पर प्रदर्शित हो..


    @ रजत..

    बात तो वहीं की वहीं रह गई.. अगर दिसम्बर की सुबह किसी भी वज़ह से नींद खुले, लेकिन १५ अगस्त को आलस्य घेर ले, तो भी तो यह अनुचित है। मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं था कि हर मुस्लिम को वैष्णॊं देवी की यात्रा करनी चाहिये, बल्कि मैनें तो हमारे-आपके बीच से कुछ मुस्लिम भाइयों का दृष्टांत लेकर यह साबित करने की कोशिश की है, कि जमाने की रौ के साथ बहकर भी अगर इनका इस्लाम सुरक्षित है, तो हर किसी का क्यों नहीं..?


    @ धीरू सिंह जी

    हम तो आपके शहर में ही हैं.. एसआरएमएस में। मोबाइल नहीं रखता, क्योंकि प्रतिबंधित है..आपको पता ही होगा। आप से मिलने की पूरी कोशिश रहेगी। अपना संपर्क पता दे दें तो आसानी रहेगी।


    @ पंकज जी

    धन्यवाद... मेरे विचारों के समर्थन के लिये।


  22. इतने दिन जानबूझकर नहीं पढ़े शायद इसे। अब पढ़े और डा.अनुराग का कमेंट और उसका जबाब पढ़कर मुस्करा रहे हैं।


  23. Shiv Says:

    ए भैया, ऐसा तेवर और ऐसा लेखन बनावटी नहीं हो सकता. ऐसे लिखने का कोई मेथड नहीं हो सकता. कोई सिखा नहीं सकता. हम सचमुच धन्य हुए बांचकर. कसम से.


  24. rajat Says:

    i would say that india is a democratic country.every one has his right to celebrate things in his oun way.if some people celebtate their independence by flag hosting ,then their might be possible that a few people celebrate by doing something else eg-lighting the candle etc...
    so this, person might wrake up early in morning on 14/08 to pay some tribute to his nation(INDIA) because his country was divided on this brutal day.
    THAT MIGHT BE HIS WAY TO CELEBRATE BY CONSOLING HIS NATION BECAUSE OF THE WOUNDS THAT HIS NATION GONE THROUGH BECAUSE OF SOME POLITITIONS(hindu+muslim).


  25. A.G.Krishnan Says:

    We Indian Hindus write very attractively, pleasing and what not, but, when it comes to practice, our ability is known world-over. Hindus are not united at all. You talk publicly about doing away "Reservation System", you will know the consequences.

    I know many bold Hindus in my area who drive rash on the streets where small children play (without caring for their lives despite my repeated request to drive slowly), I know bold rowdy Hindus teasing girls going to school/colleges, I know bold hindus who go inside temple with their shoes/chappals on, I know bold hindus who spit inside temple (s/o b.....). It was horrible experience for me when I tried to stop them but I will continue my job coz I'm a Hindu.

    Can't we do away "immersing of idols of Lord Ganesha or Deity" after Ganeshotsava or Navratra and stop further pollution of water ? And what about bursting of Fire crackers in Deepawali or hewing down of trees for merely burning "Holi" and on the next day, you might have seen the state of cleanliness of Indian Cities ?

    India is for HINDUS ONLY I agree, but ask most of the IIT-ians who are ready to go to US or UK after their studies. Who will serve our country ?

    Many more things to write but enough for now. Watch my blog and let me know your views :-

    http://icethatburns.blogspot.com/


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मेरे विचारों पर आपकी वैचारिक प्रतिक्रिया सुखद होगी.........

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