सबसे पहले अमृता तुम ....
"जब तक आंखों में कोई हसीं तसव्वुर कायम रहता है, और उस तसव्वुर की राह में जो कुछ भी ग़लत है उसके लिए रोष कायम रहता है, तब तक इंसान का सोलहवां साल भी कायम रहता है। हसीं तसव्वुर चाहे महबूब के मुंह का हो चाहे धरती के मुंह का, इससे कोई फर्क नही पड़ता। यह मन के तसव्वुर के साथ मन के सोलहवें साल का रिश्ता है........"
'रसीदी टिकट ' से
आज साइबरस्पेस के मायाजाल में अपने इस निरीह प्रयास को उतारते वक्त कई बातें जहन में घुमड़ रहीं हैं।
देश की सर्वाधिक संभावनाशील पीढी के हाथों में किताबों की जगह आईपॉड और लैपटॉप ने ले ली है। ज़मीनी हकीकत से उनका बिछोह काफी पहले हो चुका है। अस्सी के दशक में घिसे हुए चीनी मिटटी के बर्तनों में गर्म कॉफी के साथ गांधीवाद से मार्क्सवाद और चे गुएवारा की सर्वहारा क्रांति पर बहस करने वाला क्रांतिकारी युवा आईटी बूम में गायब हो चुका है। उसकी जगह आज जो युवा है वह चेतन भगत के उपन्यासों का पात्र है। वह नोएडा के किसी कॉल सेंटर में बैठा हुआ अपने आईफोन और क्रेडिट कार्ड की बदौलत दुनिया पर राज करने का स्वप्न देखता है।
इतना कुछ बदलने के बाद भी कुछ है जो बचा रह गया है। वह है युवा की महत्वाकांक्षा और यौवन का ज्वार. अपनी आइडेंटिटी की तलाश इस युवा को भी बेचैन करती है. दिन भर रिकी मार्टिन की दुनिया में खम होने के बाद रात मे पंडित रविशंकर का रेकॉर्ड सुने बिना नींद नही आती. शरद पूर्णिमा की रात माँ के हाथों की बनी खीर और उसमें चाँदनी का अदृश्य अमृत किसी भी मॅकडॉनल्ड या केएफसी की रेसिपी से ज़्यादा स्वादिष्ट और दैवीय होता है। इसी परिवर्तित-परिवर्धित युवा को सही ढंग से प्रस्तुत करने की आकांक्षा है।
खून हमारा भी खौलता है जब मज़हब के नाम पर बेगुनाहों का क़त्ल-ऐ-आम होता है, जब जाति के नाम पर समाज को दीवारों में बाँटने की नामुराद कोशिशें होती हैं। दिल में हूक हमारे भी उठती है जब सालों का संजोया किसी का सर्वस्व कोसी मैया सहेज लें जाती हैं। आँखें हमारी भी रोती हैं जब महीनों के संत्रास से तंग आकर महाराष्ट्र का कोई किसान साल-दो साल के बच्चों को सल्फास खिलाकर जीवन-यातना से मुक्ति दिला देता है।
और वहीं जब डूबता हुआ सूरज किसी झील को सुर्ख रोगन से रंग देता है और दूर उफक पर सोने की चादर बिछ जाती है तो कायनात के इन्हीं रंगों से हमारे दयार-ऐ-दिल भी रोशन होते हैं। अक्टूबर की शामों में जब अलावों से उठता धुआं ओस से भारी होकर गाँव को चारों ओर से घेर लेता है और हल्की सी ठंडी हवा पास से सहलाते हुए गुजर जाती है तो गहराते हुए अंधेरे के साथ अपने अस्तित्व की अपूर्णता का बोध हमें भी सालता है।
इसी रोष को, इसी हूक को, इसी संत्रास को, सी सौन्दर्यबोध को और अस्तित्व की इसी अपूर्णता को शब्द-रूप देने का प्रयास है.............पुनर्नवा
और अमृता तुम...
ज़िन्दगी के आखिरी लम्हे में भी सोलह साल की युवती ! जिस हसीं तसव्वुर को तुमने रोज-ऐ-अलविदा तक अपनी आंखों में कायम रखा, उसी तसव्वुर को आज मैं अपनी आंखों में सहेज कर रखने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा हूँ.... यह प्रयास चिरयौवन के नाम.......अमृता प्रीतम के नाम।
प्रिय,
बहुत अच्छा प्रयास.............
आग़ाज़ अच्छा है........अंज़ाम भी बेहद अच्छा होगा.
शुरुआत के लिये हार्दिक शुभकामनायें.....शेष टिप्पणी समयानुसार मिलती रहेगी.
सिद्धार्थ
bahut acha likha hai tumne....aise hi likhte rehna.....i will leave a commen every tym u add a new creation of urs...waiting 4 another creation..
अच्छी पोस्ट है। लिखते रहो।
मुझे बड़ी खुशी हुई तुम्हें यहाँ देखकर...। :)
there are two parts of the world
one
visible
&
another
invisible
the visible part is known to everybody but understood by some
u r one of them
and the invisible part is the tougffest part of our life understanding this lead to a totally differently vision to life of a human being
the change could lead to have change ur views and ideas to life
zindagi me up down to hote hi hai par is se ange ek dunia hai usme na sadness hai aur na hi happiness hai us dunia me jaane ke liye hmko jeene aur marne ki kala ko seekhna pare ga bahut kam log hai jo is level tak pahuch pate hai aur joh
pahuh jaate hai unhe koi aur cheez ki zarurat nahi hoti hai
they are satisfied
they have no desire
no emotional barriers
only a balanceced mind to live with
peace
prosperity
respect
&
looooooooooovvvvvveeeeeeeeee!!!!!!!!
name kushi
&
manish take care
तो ये थी पहली पोस्ट! सब बांच के यहां तक पहुंचे हैं। इसे ही कहते हैं बैकवर्ड इंट्रीगेशन या रिवर्स टेक्नालॉजी क्या?