सिविल सेवा में अंग्रेजी के लिए बढ़ते फेवेरेटिज्म के विरोध में हिंदीभाषी अभ्यर्थी कई दिनों से विरोध कर रहे हैं| कल सरकार द्वारा दिये गए आश्वासन के बाद 8 दिनों से चल रहा अनशन तोड़ दिया गया| आन्दोलन में कुछ कमियाँ अवश्य रहीं, लेकिन कई दिशाओं से इस आन्दोलन की मूल मांगों को मिसगाइड करने और भ्रम फैलाने का भी कार्य किया गया| इसे सी-सैट विरोधी, इंजीनियर-डॉक्टर विरोधी आदि रूपों में भी प्रचारित करने की साजिश हुई.. कई विचित्र प्रश्न भी उठे- जैसे, बिना अंग्रेजी जाने दक्षिण भारत में कोई कैसे कार्य कर सकता है? अंग्रेजी दुनिया से जुड़ने के लिये कितनी जरुरी है? केवल 8 अंग्रेजी के प्रश्नों के लिये इतनी मारामारी..!! थोड़ी बहुत अंग्रेजी तो हर किसी को जाननी ही चाहिये.. आदि, आदि..
2007 तक मुख्य परीक्षा में 40-45% तक हिन्दीभाषी हुआ करते थे और फाइनल मेरिट में 30-40% स्थान ले आते थे, दो-तीन तो टॉप-10 में भी होते थे, और आज गिरते पड़ते ऐसी हालत में हैं कि हालिया परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित 1122 छात्रों में से मात्र 26 हिंदी माध्यम से हैं, जबकि प्रारम्भिक परीक्षा हेतु आवेदन करने वालों में हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा के आवेदकों का अनुपात आज भी 50-50 है| दुर्भाग्यपूर्ण यह ज्यादा है कि टॉप-100 में भी हिंदी का कोई छात्र नहीं है| अर्थात इस वर्ष संभवतः कोई हिन्दीभाषी आईएएस नहीं बनेगा| बात केवल 26 सेलेक्शन तक सीमित रहती तो भी कोई बात नहीं थी| बात तो यह है कि हिंदीभाषी जो चयनित भी हो रहे हैं, वे आईएएस-आईपीएस-आईएफएस नहीं बन रहे| हिंदी के 20-22 सेलेक्शन देकर सबको 18-20वें रैंक की अलाइड सेवाएं दे भी दी गईं तो क्या फायदा..
यूपीएससी ने हमेशा इस बात की दुहाई दी है कि वे हिंदी के साथ कोई पक्षपात नहीं करते| लेकिन जब "What are the implications of the report considered?" का हिंदी अनुवाद "आलोच्य प्रतिवेदन की क्या-क्या विवक्षाएं हैं?" किया जाता है, प्रारंभिक परीक्षा में पूछा जाता है कि "What is the reason of thunder in clouds?" और इसी प्रश्न का हिंदी अनुवाद "मेघों में तड़ित के क्या कारण हैं?" किये जाने के कारण कोई प्रतिभागी सवाल गलत कर आता है तो साजिश का शक होता ही है| मुख्य परीक्षा में कई प्रश्नों में जानबूझकर कई अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अनुवाद किया ही नहीं जाता.. 2011 मुख्य परीक्षा में कई हिंदी भाषी छात्र 20 अंक का यह प्रश्न छोड़कर चले आये कि "PCPNDT एक्ट की क्या विशेषताएं हैं?" जबकि "जन्मपूर्व लिंग परीक्षण अधिनियम" के बारे में उन्हें सारी जानकारी थी| हद यह कि आन्दोलन के दौरान ही ली गई केन्द्रीय पुलिस बल की परीक्षा में यूपीएससी ने 20 अंक का अंग्रेजी में निबंध पूछा- "Mass transit systems are key to reduce fuel consumption" वहीँ यही प्रश्न हिंदी में पूछा गया "तीव्रगामी परिवहन सुविधाएं ईंधन की खपत कम करने और पर्यावरण सुधार हेतु आवश्यक हैं".. यूपीएससी को आज तक 'Implicit' हेतु 'अन्तर्वलित' से उपयुक्त कोई शब्द नहीं मिला| अवश्य ध्यान दीजियेगा कि अधिसूचना में यह स्पष्ट तौर पर वर्णित है कि अनुवाद में किसी किस्म की त्रुटि होने पर अंग्रेजी वर्जन को मान्यता दी जायेगी|
इस प्रक्रिया में सैकड़ों ऐसे योग्य लोगों को जानता हूँ जो अपने अंग्रेजी सहअभ्यर्थियों से न केवल बराबर बल्कि कई गुना योग्य थे, लेकिन किसी अलाइड सर्विस को पा सकने में भी सफल नहीं हो सके| सिविल सेवा के अपने पहले प्रयास में हिंदी से इंटरव्यू देने का खामियाजा मुझे 35% अंक पाकर चुकाना पड़ा| इस दुर्घटना के मात्र 2 महीने बाद उसी यूपीएससी के उसी बोर्ड में मैंने केन्द्रीय पुलिस सेवा का इंटरव्यू हिंदी माध्यम से होने के बावजूद अंग्रेजी में दिया और 77% अंकों के साथ अखिल भारतीय स्तर पर चौथी रैंक हासिल की| मेरे जैसे योग्य सैकड़ों छात्र केवल हिंदी मोह के कारण परीक्षा से बार-बार छंट रहे हैं|
हिन्दी माध्यम से परीक्षा देने वाल छात्र उत्तर भारत के कुछ गिने-चुने केन्द्रों तक सीमित रहते हैं.. यह एक विचित्र संयोग है, कि यूपीएससी की स्केलिंग प्रक्रिया में सबसे ज्यादा कम अंक इन्हीं केन्द्रों पर आते हैं| अविश्वसनीय रूप से छात्रों को भूगोल और समाजशास्त्र जैसे विषयों में 250 में 2 अंक, 3 अंक तक हासिल हुए हैं| निगवेकर समिति ने सिफारिश की थी कि एक ही शिक्षक से पूरे सामान्य अध्ययन की कॉपी जंचवाने की बजाय अलग-अलग विषय के विशेषज्ञों से जंचवाई जाये| स्वाभाविक है कि इतिहास के शिक्षक को भूगोल-अर्थव्यवस्था-विज्ञान-अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध-लोक प्रशासन की भी गंभीर जानकारी हो, यह संभव नहीं| इस पर यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब अन्ना यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी माध्यम में इतिहास पढ़ाने वाले उस शिक्षक के पास बिहार के किसी हिन्दीभाषी छात्र की कॉपियां जंचने को आयें| यह ध्यान रखें कि हिंदी और अंग्रेजी की उत्तर पुस्तिकाएं अलग-अलग प्रोफेसर नहीं चेक करते.. जब प्रश्नों का तात्पर्य ठेठ हिन्दी के विद्यार्थियों की समझ से बाहर है तो अंग्रेजी का प्रोफेसर उसे कितना समझ पायेगा, और समझ कर कितना अंक देगा, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है|
लेकिन बात इतनी छोटी नहीं है| बात यह है कि लोकसेवा हेतु अंग्रेजी की आवश्यकता क्यों पड़े? अगर कोई तमिल या मलयाली बिना हिंदी जाने यूपी या बिहार में सेवा दे सकता है तो कोई हिन्दीभाषी बिना अंग्रेजी जाने तमिलनाडु में क्यों नहीं? और उससे भी बढ़कर यह कि तमिलनाडु या केरल में सेवा देने हेतु अंग्रेजी की जानकारी अनिवार्य क्यों हो भला..? क्या वे यूरोप के हिस्से हैं..? अनिवार्यता तो तमिल या मलयालम जानने की होनी चाहिये। आमजन से संवाद बनाने की भाषा वही हैं.. और आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि कैडर आवंटित होने के बाद उस राज्य की भाषा और अंग्रेजी भी प्रशिक्षण अकादमी में काम भर की सिखा दी जाती है।
वस्तुतः अंग्रेजी का आग्रह भाषाई सहूलियत के लिये है ही नहीं। अंग्रेजी की जरुरत अधिकारी को केवल अपने वरिष्ठों से बात करने में पड़ती है। अंग्रेजी की अनिवार्यता मात्र इसलिए है ताकि शोषणकारी नौकरशाही का आदिम औपनिवेशिक स्वरूप बनाये रखा जा सके.. अंग्रेजी इसलिये जरुरी है ताकि नौकरशाही का अभिजात्यवर्गीय स्वरूप यथावत बनाये रखा जा सके और जनसरोकारों से निर्लिप्त रहकर, आमजन के दुःख-दर्द से अनभिज्ञ रहते हुए अपने राजनैतिक आकाओं की हुकुमपरस्ती की जा सके। अगर नौकरशाही को लोकसेवा में परिवर्तित करना है तो अपने तुच्छ सरोकारों को किनारे रखते हुए हर एक को इस आन्दोलन को अपना वैचारिक समर्थन देना होगा।
आप जैसे भी चाहें, इस आन्दोलन में भागीदार बनें.. आप मोदी समर्थक हैं, उन्हें सही सलाह देने के लिए साथ आइये.. आपका मोदी विरोध का एजेंडा है, साथ आइये.. आप अराजकतावादी हैं, साथ आइये.. आप नौकरशाही से घृणा करते हैं, साथ आइये.. आप वामपंथी हैं, व्यवस्था परिवर्तन चाहते हैं, साथ आइये.. आप संघी हैं, नेहरू की विरासत पर आखरी चोट करना चाहते हैं, साथ आइये.. आप भूतपूर्व/वर्तमान नौकरशाह हैं, सेवा की शुचिता बनाए रखना चाहते हैं, साथ आइये.. आप प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हिंदी की कमाई खाते हैं तो जरुर साथ आइये वरना जनता माफ़ नहीं करेगी.. बाकी तो "समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध.."