गत 20 जनवरी को मेरे बड़े भाई डॉ० सिद्धार्थ Ischemic Heart and Brain Disorders पर शोध करने के लिये 3 साल के लिये दक्षिण कोरिया के लिये रवाना हुए.. परिवार में किसी की पहली विदेश यात्रा है यह.. सबका विचलित होना स्वाभाविक है.. मेरे विचलन का परिणाम है ये कुछ पंक्तियाँ..
भैया,
जा रहे हो तुम ना,
इस वतन से, इस आबो-हवा से दूर
नये लोगों के बीच
नई परिस्थितियों के बीच..
देखो-
तुम्हें विदा करने कौन आया है....!
गाँव के बाहर कच्चे आम के बागीचे/टपकते महुए के बाग
उसके पार धान के खेत/पम्पिंग-सेट के हौदे
कर्बला पर के साँप-बिच्छुओं की अनगिन दंतकथायें
पेड़ की कोटरों में छिपे चिड़ियों के अंडे
वे सारे तोते, जो तुमने पोसे
तुम्हारे खींचे कबड्डी-चीके के पाले/गाड़ी गईं विकेट
तुम्हारी लखनी/दुबरछिया के डंडे/सतगाँवा की गोटियाँ
तुम्हारा पहला बल्ला/सॉरी, मैनें तोड़ दिया था उसे
और तुम्हारी पहली ट्रॉफियाँ- जीते गये अनगिनत कंचे
जो मैनें हारे, सीखने की प्रक्रिया में.....
महिया में डूबा भूजा/अलाव में भुना आलू
नेपाली रबर की गुलेल- बहुत शिकार किये थे तुमने
पाठशाला के मौलवी साहब के डंडे
पोखरे का शिव मंदिर/घाट की सीढ़ियाँ/शिवरात्रि का मेला
नागपंचमी के दिन पुतरी पीटने के ताल-तलैये
दशहरे की रामलीला/ठाकुर जी का झूलन
बाबूजी का अखबार-ऐनक-खड़ाऊँ/अम्माँ का मीसा हुआ भात/चटनी
सोते हुए माँ के हाथों की खिलाईं रोटी/दी गई थपकियाँ
पापा के हाथ/बिना जिनके पकड़े दूध तुम्हारे गले से नीचे नहीं उतरता था
छोटे चाचा/जो रामलीला में तुम्हारे पीछे खड़े होकर तुम्हें
चतुर्भुज विष्णु का रूप देते/जबकि तुम स्टेज पर उँघ रहे होते
बड़े चाचा की लेग-स्पिन होती गेंदे
हर छुट्टी में तुम्हारे-मेरे पीछे पेट की दवा और पानी का गिलास लेकर दौड़ती बहन
जिसका पाणिग्रहण कराके विदा किया है तुमने अभी
टिल्लू, आदित्य, छुटकी, छोटा बाबू/तुम जिनके लिये बाबाभैया हो
और मैं..!
और भी हैं....
लखनऊ यूनिवर्सिटी के लेक्चर हॉल/सिमैप की लैब
क्लासिक की चटनी/बादशाहनगर का प्लेटफॉर्म/गोरखनाथ एक्सप्रेस
रविवार को मौसी के घर का खाना/गंजिंग
रीगल सिनेमा/पालिका बाजार/नाथू के समोसे
कोटला फीरोजशाह के बंद दरीचों के बाशिंदे
बुआ की बनाई घुघनी/दिल्ली की ठंड
और...और...और...
और भी असंख्य चीजे हैं, जो विदा करती हैं तुम्हें
ये और कुछ नहीं, तुम्हारे अस्तित्व के कण हैं/तुम्हारे फंडामेंटल पार्टिकल्स
ये सारे रंग/खुशबुयें/स्वाद/इमेजेस/महसूसियात/श्रुतियां/स्मृतियां
सहेज कर ले जाना अपने साथ
खुद को कभी अकेला नहीं पाओगे/अजनबियों के बीच भी
निस्वार्थ प्रेम रहा है इनका/किसी प्रतिदान की आकांक्षा नहीं
लेकिन मेरी एक आस है.....
सदियों पहले तुम्हारे ही एक नेमसेक ने घर छोड़ा था
तो दुनिया को मिली थी ज्ञान, सत्य की अद्भुत विरासत
शांति के अनंतिम शिखर..
मैं चाहूँगा-
इस गाँव-गिराँव-समाज-राज्य-राष्ट्र को कुछ मिले तुमसे
सुना तुमने!
मैं चाहूँगा,
यह सिद्धार्थ का दूसरा महाभिनिष्क्रमण सिद्ध हो..!
भैया,
जा रहे हो तुम ना,
इस वतन से, इस आबो-हवा से दूर
नये लोगों के बीच
नई परिस्थितियों के बीच..
देखो-
तुम्हें विदा करने कौन आया है....!
गाँव के बाहर कच्चे आम के बागीचे/टपकते महुए के बाग
उसके पार धान के खेत/पम्पिंग-सेट के हौदे
कर्बला पर के साँप-बिच्छुओं की अनगिन दंतकथायें
पेड़ की कोटरों में छिपे चिड़ियों के अंडे
वे सारे तोते, जो तुमने पोसे
तुम्हारे खींचे कबड्डी-चीके के पाले/गाड़ी गईं विकेट
तुम्हारी लखनी/दुबरछिया के डंडे/सतगाँवा की गोटियाँ
तुम्हारा पहला बल्ला/सॉरी, मैनें तोड़ दिया था उसे
और तुम्हारी पहली ट्रॉफियाँ- जीते गये अनगिनत कंचे
जो मैनें हारे, सीखने की प्रक्रिया में.....
महिया में डूबा भूजा/अलाव में भुना आलू
नेपाली रबर की गुलेल- बहुत शिकार किये थे तुमने
पाठशाला के मौलवी साहब के डंडे
पोखरे का शिव मंदिर/घाट की सीढ़ियाँ/शिवरात्रि का मेला
नागपंचमी के दिन पुतरी पीटने के ताल-तलैये
दशहरे की रामलीला/ठाकुर जी का झूलन
बाबूजी का अखबार-ऐनक-खड़ाऊँ/अम्माँ का मीसा हुआ भात/चटनी
सोते हुए माँ के हाथों की खिलाईं रोटी/दी गई थपकियाँ
पापा के हाथ/बिना जिनके पकड़े दूध तुम्हारे गले से नीचे नहीं उतरता था
छोटे चाचा/जो रामलीला में तुम्हारे पीछे खड़े होकर तुम्हें
चतुर्भुज विष्णु का रूप देते/जबकि तुम स्टेज पर उँघ रहे होते
बड़े चाचा की लेग-स्पिन होती गेंदे
हर छुट्टी में तुम्हारे-मेरे पीछे पेट की दवा और पानी का गिलास लेकर दौड़ती बहन
जिसका पाणिग्रहण कराके विदा किया है तुमने अभी
टिल्लू, आदित्य, छुटकी, छोटा बाबू/तुम जिनके लिये बाबाभैया हो
और मैं..!
और भी हैं....
लखनऊ यूनिवर्सिटी के लेक्चर हॉल/सिमैप की लैब
क्लासिक की चटनी/बादशाहनगर का प्लेटफॉर्म/गोरखनाथ एक्सप्रेस
रविवार को मौसी के घर का खाना/गंजिंग
रीगल सिनेमा/पालिका बाजार/नाथू के समोसे
कोटला फीरोजशाह के बंद दरीचों के बाशिंदे
बुआ की बनाई घुघनी/दिल्ली की ठंड
और...और...और...
और भी असंख्य चीजे हैं, जो विदा करती हैं तुम्हें
ये और कुछ नहीं, तुम्हारे अस्तित्व के कण हैं/तुम्हारे फंडामेंटल पार्टिकल्स
ये सारे रंग/खुशबुयें/स्वाद/इमेजेस/महसूसियात/श्रुतियां/स्मृतियां
सहेज कर ले जाना अपने साथ
खुद को कभी अकेला नहीं पाओगे/अजनबियों के बीच भी
निस्वार्थ प्रेम रहा है इनका/किसी प्रतिदान की आकांक्षा नहीं
लेकिन मेरी एक आस है.....
सदियों पहले तुम्हारे ही एक नेमसेक ने घर छोड़ा था
तो दुनिया को मिली थी ज्ञान, सत्य की अद्भुत विरासत
शांति के अनंतिम शिखर..
मैं चाहूँगा-
इस गाँव-गिराँव-समाज-राज्य-राष्ट्र को कुछ मिले तुमसे
सुना तुमने!
मैं चाहूँगा,
यह सिद्धार्थ का दूसरा महाभिनिष्क्रमण सिद्ध हो..!
सार्थक और शुभ हो यह सांस्कृतिक महाभिनिष्क्रमण -बहुत बहुत शुभकामनाये!
इतना कुछ याद है! जीवित है !! धन्य हो।
किस अनुज ने इतनी उदात्त मंगल कामना की होगी।
अद्भुत।
मेरी शुभकामनाएँ।
स्मृतियों की लहरें उड़ान को सुगम बनाएँ रखें।
अद्भुत। सुंदर और गहन अनुभूतियों से सजा लेखन।
शुभकामनाएं।
क्या बात है! फ़िदा करने वाली पंक्तियाँ.
शुभ हो ये महाभिनिष्क्रमण.
गज़ब!
यह सिद्धार्थ कितना खुशनसीब है यह कहने की बात नहीं. मैं भी बड़ा बेटा हूँ और छोटे भाई के उदगार को अच्छी तरह समझता हूँ. हम तकनीक के युग में जीते हैं और प्रगति ने सचमुच ही दुनिया को बड़ा छोटा कर दिया है.
शुभ यात्रा!
ये और कुछ नहीं, तुम्हारे अस्तित्व के कण हैं/तुम्हारे फंडामेंटल पार्टिकल्स
आह!!
भाई को शुभकामनाएँ..अपना शोध पूरा कर देश का नाम का करें..अपना नाम करे..इन सारी विरासतों का नाम करें. सब विरासतें ही तो हैं..
बस आँख नम है ---- और इनमे कुछ अपनी यादें मिल कर इसे दरिया बनाने पर आमदा हो गयी हैं-- शुभ हो ये महाभिनिष्क्रमण.। आशीर्वाद्
आपकी शुभकामनाओं में मेरी भी जोड़ लीजिये.
वैसे तो यह सबकुछ अपनी आँखों से देखा हुआ लगता है, लेकिन तुमने इन चीजों को जितनी खुबसूरती से क्रमबद्ध करके समय के इस कैनवास पर टाँक दिया है उसे अपलक निहारते रहने का मन हो रहा है।
अन्नू (वही... सिद्धार्थ) को मैने गोरखपुर, लखनऊ वि.वि. और फिर सीमैप में एक शान्त योगी की तरह परिश्रम करते देखा है। उसकी विनम्रता और उत्कृष्ट संस्कारों का प्रशंसक रहा हूँ। इन अनुभूतियों से खुद को बहुत ही जुड़ा महसूस करता हूँ। वह निश्चित् ही हमारी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
रचना (तुम्हारी दीदी) बता रही हैं कि ऊपर से दूसरी फोटू इनकी खींची हुई है। भावुक हो उठी हैं।
विदेश में शाकाहारी भारतीय भोजन न मिल पाने की समस्या का निराकरण कैसे हो पा रहा है यह जानना चाहता हूँ। कोई अनुभवी सलाह यहाँ मिल सकती है क्या?
सब सफल साकार हो, सब प्रयोजन सिद्ध हों.
मित्र कार्तिकेय !
मैं राम - नगरी का बासिन्दा दुआ करता हूँ
ईश्वर से की तुम दोनों भाइयों का प्रेम 'भारत-राम'-मय हो ..
दिल की दवात में कलम डुबो कर लिखा है आपने !
मुझे तो निशब्द कर दिया है !
इतनी भावुकता में भी अंत वाली पंक्तियों का 'विवेक' काबिले-तारीफ है ! आभार !
पहले भूमिका पढ़ी तो नाम फिल्म का सोंग याद आया ".तू कल चला जाएगा तो मै क्या करूँगा"....एक उम्र में भी जब पीछे मुड़कर देखते है तो चीजे अपने मायने बदल दिखती है .मसलन वो चीजे जो मामूली थी ...........
लखनऊ यूनिवर्सिटी के लेक्चर हॉल/सिमैप की लैब
क्लासिक की चटनी/बादशाहनगर का प्लेटफॉर्म/गोरखनाथ एक्सप्रेस
रविवार को मौसी के घर का खाना/गंजिंग
रीगल सिनेमा/पालिका बाजार/नाथू के समोसे
कोटला फीरोजशाह के बंद दरीचों के बाशिंदे
बुआ की बनाई घुघनी/दिल्ली की ठंड
अचानक कैसे जिंदा हो उठती है .....सोचता हूँ भाई भी यादो का एक गठ्ठर बाँध के ले जा रहा होगा.....
और भी असंख्य चीजे हैं, जो विदा करती हैं तुम्हें
ये और कुछ नहीं, तुम्हारे अस्तित्व के कण हैं/तुम्हारे फंडामेंटल पार्टिकल्स
ये सारे रंग/खुशबुयें/स्वाद/इमेजेस/महसूसियात/श्रुतियां/स्मृतियां
सहेज कर ले जाना अपने साथ
खुद को कभी अकेला नहीं पाओगे/अजनबियों के बीच भी
निस्वार्थ प्रेम रहा है इनका/किसी प्रतिदान की आकांक्षा नहीं
best of luck to bro......
सिद्धार्थ को शुभकामनाये .ऐसा विदाई गीत सच मे यादगार है सिद्धार्थ के लिये भी और हमारे लिये भी .
ओह, बहुत स्पन्दनयुक्त पोस्ट!
बहुत अच्छी। बुकमार्कयोग्य।
adbhut bhaiyya , aap to kamaal kar gaye main aise hindi putra ko badhai bhi deta hun aur amntran apne blog par...www.rangdeergha.blogspot.com
भैया कि बस याद आ गयी..
आपके भैया को सादर प्रणाम सहित अनेकानेक शुभकामनाये भी..
waah baandh ke rakh diya aapne... sab kuchh apna sa laga... bas ek fark hai.. mere chhote bhai ka naam Siddharth hai.. :)
aapke gaanv, Lucknow, Delhi sab jagah sair kar lee.. theek wahi wahi jagah jahan main raha bas CIMAP ki jagah CDRI bass..
shubhkamnayen bhai ko bhi aapko bhi..
Jai Hind...
प्रिय कार्तिकेय,
वाह क्या अद्भुत संयोग है....मैं आज सुबह जब तैयार होकर लैब के लिए निकल रहा था, तुम्हारी इस कविता का प्रिंट पढ़ा.
लैब पहुंचा तो सबसे पहले मेल पे कार्तिकेय का ब्लॉग अपडेट मिला.
कविता पुनः पढके मन को बहुत ही प्रसन्नता हुयी. आज दिन भर के लिए एक नयी ऊर्जा मिल गयी.
मन को बड़ा संबल मिलता है की यहाँ इस नितान्त पराये देश में मेरे साथ इतने सारे लोग और इतनी सारी चीजें है.
मैं कार्तिकेय को धन्यवाद दूँ तो कम है और अच्छा भी नहीं लगेगा. बस तुम्हे आशीष देता हूँ. बाकी आप सभी सुधी जनों को साधूवाद प्रकट करता हूँ.
मैं कार्तिकेय के "आस" को पूर्ण करने का सर्वोत्तम प्रयास करूँगा.
बहुत बहुत धन्यवाद
सिद्धार्थ मिश्र
@सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी:
विदेश में शाकाहारी भारतीय भोजन न मिल पाने की समस्या का निराकरण कैसे हो पा रहा है यह जानना चाहता हूँ। कोई अनुभवी सलाह यहाँ मिल सकती है क्या?
अमेरिका से वापस जाकर सिओल में रह रही एक कोरीयन की सलाह शब्दशः यहाँ प्रस्तुत है: There are rarely vegetarian in Korea, so I think it will be very difficult to find special menu for vegetarian in general restaurant. But he/she can find some food only made with vegetables or has to ask the cook without meat or seafood. But there are a lot of markets everywhere so it'll be easy to cook by himself/herself.
अब हमें सिद्धार्थ का नगर नहीं पता है मगर सोल के शाकाहारी अड्डों (पवित्र भोजनालय तो नहीं कहे जा सकते हैं) की सूची यहाँ है:
http://www.happycow.net/asia/south_korea/seoul/
सिद्धार्थ जीजा जी,
आपके मेरे शाकाहारी भोजन के प्रति चिंता अच्छी लगी. मैं आपको अवगत कराना चाहूँगा की मैंने यहाँ पर शाकाहार का प्रबंध कर लिया है.
यहाँ बनाने-पकाने के लिए सारी वस्तुएं और भोज्य पदार्थ उपलब्ध है. मैंने हॉस्टल के कॉमन किचेन में खाना बनाना शुरू कर दिया है. यहाँ बाहर के रेस्तरा में शुद्ध शाकाहारी मिलना मुश्किल है, पर मेरे दुभाषिये कोरियन मित्र की सहायता से मुझे हॉस्पिटल के मेस और अन्य रेस्तरा में भी शाकाहारी भोजन मिल जाता है.
ये बात और है की वह खाना ऐसा उबला हुआ और बे-लज़ीज़ होता है की आप बिना बीमार हुए और बिना डॉक्टर के सलाह के आप खाना नहीं चाहेंगे.
वैसे मैं आप सबको अपने खुद के बनाये ही भोजन पर कोरिया में आमंत्रित करता हूँ.
सिद्धार्थ मिश्र
ऊपर से दूसरी तस्वीर रचना दीदी की ही खिंची हुयी है. डुमरी में बरसीन के खेत में.
कोरिया में मेरा शहर है, SUWON, और सम्बद्धता नीचे है.
Siddhartha K Mishra PhD
Post Doctoral Fellow
Dept. of Physiology, School of Medicine
Dept. of Molecular Science and Technology
Ajou University, Suwon, 443-749
Korea (Republic of)
Cell: +82-10-2567-2468
Immensely impressive, honestly I never heard such a beautiful & compiled thoughts ever before even when I came across famous poets & thought leaders around the places. All the very best Kartikey, keep sliding the core :). Cheers!
sansmarno ka behad sundar prastutikarn...
bhavnao se bahra bahut sundar post...
इस प्रविष्टि-सम दूसरी प्रविष्टि नहीं पढ़ी इस ब्लॉग-जगत में । अभिभूत हूँ ।
आत्मीय प्रविष्टि । आभार ।
कार्तिकेय-सिद्धार्थ, दिल से प्रार्थना है कि ईश्वर आपकी कामनायें व अपेक्षायें पूरी करें।
@ सिद्धार्थ (शंकर त्रिपाठी) जी..
भैया के भोजन-प्रबंध की चिन्ता करने के लिये अतिशय धन्यवाद.. स्मार्ट इंडियन जी ने तो बड़ी लम्बी लिस्ट पेश कर ही दी है, और भाईसाहब ने भी स्थिति स्पष्ट कर दी है, अस्तु चिंता की कोई बात रह नहीं जाती.. धन्यवाद स्मार्ट इंडियन जी!
बिलकुल सही पहचाना रचना दी, यह फोटॊ तुम्हारी ही खींची हुई है..
अन्य सभी पाठकों के प्रेम एवं आशीर्वाद के लिये धन्यवाद!
कहीं न कहीं सब कुछ अपना सा लगा... हर जगह अपने को रख पढ़ लिया. ! दिन में पढ़ा था... अभी बता रहा हूँ... बड़ा सोलिड लिखा है भाई. प्रिंट आउट निकाल के रखने लायक.
ये और कुछ नहीं, तुम्हारे अस्तित्व के कण हैं/तुम्हारे फंडामेंटल पार्टिकल्स
ये सारे रंग/खुशबुयें/स्वाद/इमेजेस/महसूसियात/श्रुतियां/स्मृतियां
सहेज कर ले जाना अपने साथ
खुद को कभी अकेला नहीं पाओगे/अजनबियों के बीच भी
निस्वार्थ प्रेम रहा है इनका/किसी प्रतिदान की आकांक्षा नहीं
क्या कहूँ.....कोई शब्द ढूंढ नहीं पा रही बह रहे मन को बाँध उसमे अबिव्यक्त कर पाने की...
आम सी बातों/चीजों को कितना ख़ास ,कितना भावप्रवण बना दिया आपने....वाह !!! और कितना बड़ा सच कहा...ये सभी आम चीजें अहमारे आस्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं...इनसे कटकर ही व्यक्ति मात्र यन्त्र सा बन कर रह जाता है...
लेकिन इनसे जुड़े रह ,जब व्यक्ति उन्ही अपने अस्तित्व से जुड़े हुओं के लिए कुछ सार्थक कर पाता है तो जीवन सार्थक हो जाता है...
अनंत शुभकामनाएं....