सभी से क्षमाप्रार्थना.... अपरिहार्य कारणों से न तो कुछ नया लिख पा रहा हूँ और न ही आप सबकी पोस्टें पढ़ पा रहा हूँ। जिन्हें पढ़ पा रहा हूँ उनपर टिप्पणी नहीं कर पा रहा। एक साथ कई असमर्थताओं से जूझना पड़ रहा है। परीक्षाओं, वाइवा के साथ-साथ लैपटाप की खराबी और स्वास्थ्य समस्याओं से निबटने के बाद अब सेमेस्टर ब्रेक में अपने गाँव जाना पड़ रहा है जो मेरा प्रिय शगल है, अस्तु मकर संक्रान्ति तक अनुपस्थित ही रहना है, क्योंकि "भाषा में भदेस हूँ, इतना कायर हूँ कि उत्तर प्रदेश हूँ" के पुरबिया गाँवों में अभी टेलीकाम क्रान्ति की बयार इतना खुलकर नहीं पहुंची कि बाँसपार में अंतर्जाल सुविधा का लुत्फ़ उठाया जा सके।
खैर, नया वर्ष मुझसे पूछ्कर तो आया नहीं, इसलिये इसके स्वागत में मैं कुछ नया न लिखकर कैलाश गौतम जी की एक ग़ज़ल ही ठेल देता हूँ। लगे हाथ बधाई देने का कोरम भी पूरा हो जायेगा, और न लिख पाने का अपराधबोध भी थोड़ा कम हो जायेगा।
नये साल की नई तसल्ली, अच्छी है जी अच्छी है,
दूध नहीं पीयेगी बिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
बातों में मक्खन ही मक्खन, मन में कोई काँटे जी,
आँखों में ये चर्बी-झिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
दाँत गिरे सिर चढ़ी सफ़ेदी, फ़िर भी बचपन नहीं गया,
पचपन में ये कुट्टी-मिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
सूप सभा में चुप बैठा है, देख रहा है लोगों को,
चलनी उड़ा रही है खिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
किसके सिर से किसके सिर, आ गई उछलकर झटके में,
रनिंग शील्ड हो गई दुपल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
रही बात इन गिरे दिनों में, टिकने और ठहरने की
भूसाघर में बरफ़ की सिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
बारूदों, अंगारों, अंधे कुओं, सुरंगों, साँपों को,
झेल रही सदियों से दिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
आप सभी को पुनः नव वर्ष की शुभकामनायें... मकर संक्रान्ति के पश्चात मुलाकात होगी।
कोई बात नही.. जल्दी से आइये आपका इंतजार है.. :)
और हाँ गजल भी अच्छी है जी अच्छी है.. :)
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद
नववर्ष मंगलमय हो। सँक्रांति का ढ़ूंढ़ी-तिलवा लाइयेगा!
मकर संक्रान्ति को तो हम बाद में जान पाये। गाँव में तो हम पुरबिए इसे ‘खिचड़ी’ कहते हैं। गोरखनाथ मन्दिर में खिचड़ी के चावल का चढ़ावा चढ़ता है और घर-घर में सुबह-सुबह नहाकर खिचड़ी खायी जाती है। धूप न निकल रही हो तो मजा खराब हो जाता है। खै आप मजा लेने जाओ साथ में कैलाश गौतम जी की तर्ज पर ये ताजा लाइनें आप के प्रिय शगल को समर्पित है...
खिंचड़ी खाकर धूप सेंकना लाई-तिल के साथ वहाँ,
जहाँ उड़े डण्डे से गिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
बच्चे आठ दिए थे लेकिन ठण्ड लग गयी चार मरे,
घुरहू के घर की वो पिल्ली, अच्छी है जी अच्छी है।
शुभकामनाएं।
नये वर्ष में और अच्छा लिखो यही शुभ कामनायें हैं.
नववर्ष की शुभकामनाएं ! सब कुछ भूलकर सर्दी में घर पर आनंद लो इससे अच्छा समय नहीं हो सकता बाकी ब्लॉग्गिंग, टिपण्णी तो सब मोह माया है :-)
सुन्दर है! और का कहें पिछले साल के लिये। कैलाश गौतमजी दिखे तो सुन्दर कहना ही पड़ा!