मैनें एक साल लखनऊ में गुजारा है। ये नही कहूँगा कि आईआईटी की तैयारी की है, अन्यथा कई लोगों की ओर से कई सवाल उठ खड़े होंगे।
उसी एक साल में मुझे एक बड़ी बुरी लत लगी- डायरी लिखने की। आदत लखनऊ छोड़ने के साथ ही छूट गई थी। लेकिन बीते दिनों वह डायरी हाथ लगी तो पुरानी यादें ताजा हो गयीं। उस डायरी का मैनें नाम रखा था- तन्हाई के राजदार.... कभी डरता था कि ये राज कहीं किसी पे ज़ाहिर न हो जायें, अब ख़ुद अपने हाथों डायरी के कुछ पन्नों कों सार्वजनिक कर रहा हूँ। चूंकि अहसास थोड़े जाती हैं, इसलिए उम्मीद करूंगा कि आप कमेन्ट देने की तकलीफ नहीं करेंगे... साथ ही कुछ नए पन्ने भी लिखूंगा.... धन्यवाद।
उसी एक साल में मुझे एक बड़ी बुरी लत लगी- डायरी लिखने की। आदत लखनऊ छोड़ने के साथ ही छूट गई थी। लेकिन बीते दिनों वह डायरी हाथ लगी तो पुरानी यादें ताजा हो गयीं। उस डायरी का मैनें नाम रखा था- तन्हाई के राजदार.... कभी डरता था कि ये राज कहीं किसी पे ज़ाहिर न हो जायें, अब ख़ुद अपने हाथों डायरी के कुछ पन्नों कों सार्वजनिक कर रहा हूँ। चूंकि अहसास थोड़े जाती हैं, इसलिए उम्मीद करूंगा कि आप कमेन्ट देने की तकलीफ नहीं करेंगे... साथ ही कुछ नए पन्ने भी लिखूंगा.... धन्यवाद।
सही है।शुरू करो।लिखते रहो! वर्ड वेरीफ़िकेशन हटाओ!