मैं आज एक मुक्त-कविता सूत्र प्रारम्भ कर रहा हूँ। यह सात-आठ बेतरतीब अतुकबंदियों-गद्य काव्यों की एक श्रृंखला है...जिसकी एक-एक लड़ी मैं वक़्त-बेवक्त पोस्ट करता रहूँगा। और हाँ जाहिर है, ये भी मेरी डायरी के पन्ने हुआ करते थे। इसलिए इसे डायरी की ही भांति पढ़ें, ये खाली दिमाग का शब्दों के साथ खिलवाड़ है, अतः कोई माने ढूँढने की कोशिश बेमानी साबित हो सकती है.... एक बात और है, मैं कमबख्त विराम-अल्पविराम का कानून आज तक नही समझ पाया, विद्वतजन कृपया इस बारे में मेरा मार्गदर्शन करें, शायद यह (अ)कविता थोडी सुंदर बन पड़े......
स्वप्न
सपनों जैसे लगते हैं वे दिन,
अभी कल की ही तो बात है, जब तुमने-
सकुचाते हुए बढ़ा दिया था अपना हाथ
मेरी तरफ़
और बिना सोचे समझे थाम लिया था मैंने उसे
वाकई सपनों जैसे ही थे वे दिन !
जब अवसाद की अँधेरी
संत्रास की तल्ख़ चुभन, और
तन्हाई की उस मनहूसियत भरी कब्र में सोया-
एक बे-परवाज़ परिंदा चौंक उठा था.
क्यूंकि एक अनजान राह की जानिब से सदा आई थी
और
दूर उफक पर कोई शमअ झिलमिला उठा थी।
शायद सपनों जैसे ही थे वे दिन
जब रोज-ऐ-अव्वल से कब्र में सोया वह परिंदा
निकल आया था अपनी ताबूत से,
और देखा था उसने-
बाहर लरजाँ बहार का मौसम,
अमरित में नहाया चाँद,
और उससे भी खूबसूरत एक मंजर-
एक ख्वाब सी खूबसूरत महजबीं को.
और उसे लगा-
उसके परों में अभी जान बाकी है.......
१२ नवंबर २००५
रात्रि १२:१५ बजे
लखनऊ
स्वप्न
सपनों जैसे लगते हैं वे दिन,
अभी कल की ही तो बात है, जब तुमने-
सकुचाते हुए बढ़ा दिया था अपना हाथ
मेरी तरफ़
और बिना सोचे समझे थाम लिया था मैंने उसे
वाकई सपनों जैसे ही थे वे दिन !
जब अवसाद की अँधेरी
संत्रास की तल्ख़ चुभन, और
तन्हाई की उस मनहूसियत भरी कब्र में सोया-
एक बे-परवाज़ परिंदा चौंक उठा था.
क्यूंकि एक अनजान राह की जानिब से सदा आई थी
और
दूर उफक पर कोई शमअ झिलमिला उठा थी।
शायद सपनों जैसे ही थे वे दिन
जब रोज-ऐ-अव्वल से कब्र में सोया वह परिंदा
निकल आया था अपनी ताबूत से,
और देखा था उसने-
बाहर लरजाँ बहार का मौसम,
अमरित में नहाया चाँद,
और उससे भी खूबसूरत एक मंजर-
एक ख्वाब सी खूबसूरत महजबीं को.
और उसे लगा-
उसके परों में अभी जान बाकी है.......
१२ नवंबर २००५
रात्रि १२:१५ बजे
लखनऊ
आपके चिट्ठे का पता मिलते ही आया था यहां मगर उस समय ऑफिस जाने कि हड़बड़ी में कुछ लिख नहीं पाया और ना ही कुछ ठीक से पढ़ पाया.. मगर एक नेक काम जरूर कर लिया था कि आपके चिट्ठे को अपने ब्लौग रॉल में जोड़ लिया था.. अभी जैसे ही आपके नये पोस्ट को अपने ब्लौग पर देखा वैसे ही यहां भाग आया और एक बार में ही सारे पोस्ट पढ़ डाले.. जब पहली बार आया तो मुझे यह अहसास हुआ जैसे प्रशान्त ही कोई और चेहरा बना कर कुछ अलग शब्दों का ताना बाना बुन रहा है.. बहुत बढिया..
बधाई.. बस इस महफिल में बने रहें..
चलते चलते आपको आपके पिछले पोस्ट के कुछ प्रश्नों का उत्तर भी देता चलूं.. ठेलना प्योर ज्ञान जी द्वारा निर्मित शब्द है ब्लौगिंग में, जिसे अनूप जी और ज्ञान जी अक्सर प्रयोग में लाते हैं.. वैसे वह प्रशंसा ही था.. :)
और दूसरी बात, राज जी से कॉमिक क्या मांगना अजी मांगना ही है तो हमसे मांगिये.. हम एक कॉमिक कम्यूनिटी चिट्ठा भी चलाते हैं.. आप चाहे तो उसके मेम्बर भी बन सकते हैं.. उसका पता है - http://comics-diwane.blogspot.com/ :)
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
---
आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)
बहुत बढ़िया लिखे हो... अब आना तो पड़ेगा ही :-) सपनें तो 'देखते हैं सब इन्हें अपनी उमर अपने समय में.'
इस नए ब्लाग के साथ ही आपका भी हिन्दी चिटठाजगत में स्वागत है। आशा ही नहीं , पूर्ण विश्वास है कि आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठाजगत को मजबूती देंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है।
उम्दा लेखन
क्यूंकि एक अनजान राह की जानिब से सदा आई थी
और
दूर उफक पर कोई शमअ झिलमिला उठा थी।
सिद्धार्थजी के ब्लॉग से यहां आया। और, लगता है कि अभी काफी रंग दिखेंगे गद्य-पद्य- हर तरीके के। बढ़िया है।
और बिना सोचे समझे थाम लिया था मैंने उसे
हाथ थामने के बाद क्या हुआ पार्टनर...? :)
अच्छी कविता। जमाए रहो जी...।
शायद सपनों जैसे ही थे वे दिन
जब रोज-ऐ-अव्वल से कब्र में सोया वह परिंदा
निकल आया था अपनी ताबूत से,
और देखा था उसने-
बाहर लरजाँ बहार का मौसम,
अमरित में नहाया चाँद,
बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ ....लिखते अच्छा है आप
जय हो। आगे से पीछे आये लिंक देखने अब उधर ही जा रहे हैं। देखते हैं वहां क्या गुल खिलाये हैं।
परिचय में आपने लिखा है ; '' .... आगे देखते हैं क्या बदा है ..''
पकड़ लिए गए आप इसी में ,
पकड़ ? / ! / .... इसका जवाब भविष्य की कोख में ....
कविता पर यही कहूँगा की इतनी 'इमानदारी' भी इसी उम्र
और ऐसे ही व्यक्ति में हो सकती है ...