अरे बाप रे बाप एतना मनई....
देहात में कभी 'नाच' ( रामसंवारे की नौटंकी, रामगोपाल वर्मा की नहीं ) शुरू होता है, तो भांड ( जोकर ) का मंच पर आने के बाद पहला डायलाग यही होता है..... अरे बाप रे बाप एतना मनई....
वैसी ही कुछ मनःस्थिति मेरी भी हो रही है। इकठ्ठा इतने सारे कमेंट्स और विजिटर्स को देखकर मैं विचारशून्य हो रहा हूँ। डर भी लग रहा है क्यूंकि सुना है आपकी दुनिया बड़ी बेरहम है। कम-अज़-कम अनूप जी तो हैं ही। आप भी टांग अडाने से बाज नहीं आयेंगे , मुझे पता है।
सभी वरिष्ठ ब्लॉगरों को मुझ तिफ्ल की हौसला-अफजाई के लिए विनम्र धन्यवाद..
देहात में कभी 'नाच' ( रामसंवारे की नौटंकी, रामगोपाल वर्मा की नहीं ) शुरू होता है, तो भांड ( जोकर ) का मंच पर आने के बाद पहला डायलाग यही होता है..... अरे बाप रे बाप एतना मनई....
वैसी ही कुछ मनःस्थिति मेरी भी हो रही है। इकठ्ठा इतने सारे कमेंट्स और विजिटर्स को देखकर मैं विचारशून्य हो रहा हूँ। डर भी लग रहा है क्यूंकि सुना है आपकी दुनिया बड़ी बेरहम है। कम-अज़-कम अनूप जी तो हैं ही। आप भी टांग अडाने से बाज नहीं आयेंगे , मुझे पता है।
सभी वरिष्ठ ब्लॉगरों को मुझ तिफ्ल की हौसला-अफजाई के लिए विनम्र धन्यवाद..
रंजना जी,
मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप जैसे खांटी महसूसियत के लोग मेरी इस ब्लॉगिंग-बेवकूफी को इतनी तवज्जो देंगे. मुझे इतना सीरियसली मत लीजिए. खुद से उम्मीदें बढ़ जाती हैं
ज्ञानदत्त जी,
अभी नया हूँ इसलिए आपकी तकनीकी शब्दावली सीखने में वक़्त लगेगा. पहले यह तय हो जाए कि 'ठेलना' प्रशंसा थी या आलोचना, फिर उसी के मुताबिक जवाब दूँगा।
मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप जैसे खांटी महसूसियत के लोग मेरी इस ब्लॉगिंग-बेवकूफी को इतनी तवज्जो देंगे. मुझे इतना सीरियसली मत लीजिए. खुद से उम्मीदें बढ़ जाती हैं
ज्ञानदत्त जी,
अभी नया हूँ इसलिए आपकी तकनीकी शब्दावली सीखने में वक़्त लगेगा. पहले यह तय हो जाए कि 'ठेलना' प्रशंसा थी या आलोचना, फिर उसी के मुताबिक जवाब दूँगा।
अब पास होना तो कोई हम टेक्नोक्रेट्स से सीखे. हम तो पहले हेन्स प्रूव्ड लिखते हैं, फिर सवाल पढ़ा जाता है.बांकेबिहारी की कृपा यथावत रही तो आगे भी गाड़ी चलती रहेगी.
दिनेशराय द्विवेदी जी,
मुझ जैसे बच्चे के लिए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा कि आप जैसा वरिष्ठ मुझसे आशा करता हैं कि मेरी उससे गहरी छनेगी... ! जेनरेशन गैप तो मिथ्या है....
सतीश पंचम जी,
खुशी है कि आपकी यादों को कुरेद सका, वैसे बताया नहीं आपने कि निकला क्या? कहीं ऐसा तो नही कल आप कह बैठें 'कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है'..!
राज भाटिया जी,
आपका ब्लॉग बिल्कुल मेरे जैसे लोगों के वास्ते है, यहाँ तो सब बड़े बनने की ताक में रहते हैं.. अगर कॉमिक्स वग़ैरह पोस्ट करें तो ज़रूर पढूंगा॥
दो सिद्धार्थ जी हैं ... दोनों ब्रदर्स हैं. एक इन-लॉ दूसरे आउट-लॉ (?)
सिद्धार्थ जी (आउट-लॉ),
भैया, आपका मेरे पर भरोसा और सतत उत्साहवर्धन ही है जो मुझे हमेशा संबल प्रदान करता रहा है/रहेगा। खुशी के पलों में आप का ध्यान आए न आए, टूटन के हर लम्हे में आप से ही सहारा मिला है।
सिद्धार्थ जी(इन-लॉ),
आपसे सारी बात मिलने पर ही होगी.. पुरानी खुन्नस निकालने का इससे बढ़िया मौका नही मिला जो इकट्ठा इतने मेहमानों को मेरी झोपड़ी का रास्ता बता दिया....
और रचना दी,
तेरी शुभचिन्ता का ताबीज़ मेरे साथ रहता है तो सब अच्छा-अच्छा होता है.....
येल्लेव इस पर कोई टिपियाया ही नहीं था अभी तक। लाहौल ब्लाग कूवत!