गाँव आना हुआ। लोगबाग वही, धूर-धक्कड़ वही, पोखरे में काई भी उतनी ही, और उसमें नहा रहे महँगू के लौण्डों के बदन पर चीकट मैल भी उतनी ही.. लेकिन परिवार का एक अभिन्न सदस्य अनुपस्थित था। पीढ़ी-दर-पीढ़ी घृतकौशिक गोत्र: त्रिप्रवर: बाभन परिवार की रसोई जुठारते मार्जार वंश की चश्मो-चिराग़, मेरी अग्रजा की लाडली "मोनू की बिलार" परिदृश्य से गायब थी.. आशंका सच निकली.. माँ की जानकारी ने अद्यतन किया कि बिलार जीवन रंगमंच पर अपनी भूमिका निभा कर प्रभु चरणों को प्राप्त हुई। दुखित हृद्य को एक ठेलनीय सामग्री की भूमिका बँधती दिखी। नया न लिखकर डायरी के पुराने पन्ने पलटे। एक संस्मरण चेंप देना सही समझा।
ये पोस्ट तब लिखी थी, जब शीतलहर अपने अगले पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ने को बेकरार थी, परम आदरणीय नारायण दत्त तिवारी की बूढ़ी ख्वाहिशें की चीनी खतम होने का नाम नहीं ले रही थी.. और भगवान अंशुमालि कुहासे से युद्ध में इज़्ज़त का फालूदा करवाने को जरा भी उत्सुक नहीं नजर आ रहे थे.. तारीख जनवरी माह के उत्तरार्ध का कोई भी दिन मान लें।
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"अईसन जाड़ त कब्बो नाहीं परल बाबू".. नरायन महतो खँखार कर बोले। "बुझात बाटे जइसे ई सीत बाता तूरि के करेजवा में धंसि जाई.."
सच है, बहुत ठंड पड़ी इस साल। साल के पहले दिन सूरज ने अमर सिंह की तरह जो इस्तीफा दिया, सो पूरा महीना बीतने को आया, लेकिन नहिंये माने। गनीमत थी कि खिचड़ी के दिन दिख गये, वरना कुंभ में नहाने पहुंचे लोगों की आस्था का भ्रम टूटते देर न लगती। बहुतों ने नववर्ष का प्रथम स्नान खिचड़ी के ही दिन किया, और दूसरे स्नान की नौबत आज तलक नहीं आई।
कमबखत कुहरा लील गया कि डॉक्टर ने बेडरेस्ट की सलाह दे डाली। भगवान भुवनभास्कर बिलायमान हुए और बकौल के०पी० सक्सेना- "ठंड है कि किसी बूढ़े नेता की जिस्मानी हवस की तरह जाती ही नहीं"। असंख्य ऑक्टोजेनेरियन लोगबाग महाप्रयाण कर गये और अब भी लग रहा है कि पसलियाँ तोड़कर यह जाड़ा कलेजे में धंस जायेगा।
गेंहू की फसल पानी माँग रही है, लेकिन मौसम ऐसा नहीं हो पा रहा कि पानी चलाया जाय। बदली-कुहेसे-ओस में पाला मार गया तो? जनाउरों की हालत तो और गई गुजरी है। किसी छप्पर पे, बगीचे में बन्दरों को कुछ भी नहीं हासिल हो पा रहा। पत्तियां तक नोच-नोचकर खा गये, अब दूर-दूर तक कुछ भी नहीं। ठंड में कुड़कुड़ाते, एक टुकड़ा बेल पर सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट की जंग लड़्ते पेड़ों पर लटकायमान हैं।
सच है, बहुत ठंड पड़ी इस साल। साल के पहले दिन सूरज ने अमर सिंह की तरह जो इस्तीफा दिया, सो पूरा महीना बीतने को आया, लेकिन नहिंये माने। गनीमत थी कि खिचड़ी के दिन दिख गये, वरना कुंभ में नहाने पहुंचे लोगों की आस्था का भ्रम टूटते देर न लगती। बहुतों ने नववर्ष का प्रथम स्नान खिचड़ी के ही दिन किया, और दूसरे स्नान की नौबत आज तलक नहीं आई।
कमबखत कुहरा लील गया कि डॉक्टर ने बेडरेस्ट की सलाह दे डाली। भगवान भुवनभास्कर बिलायमान हुए और बकौल के०पी० सक्सेना- "ठंड है कि किसी बूढ़े नेता की जिस्मानी हवस की तरह जाती ही नहीं"। असंख्य ऑक्टोजेनेरियन लोगबाग महाप्रयाण कर गये और अब भी लग रहा है कि पसलियाँ तोड़कर यह जाड़ा कलेजे में धंस जायेगा।
गेंहू की फसल पानी माँग रही है, लेकिन मौसम ऐसा नहीं हो पा रहा कि पानी चलाया जाय। बदली-कुहेसे-ओस में पाला मार गया तो? जनाउरों की हालत तो और गई गुजरी है। किसी छप्पर पे, बगीचे में बन्दरों को कुछ भी नहीं हासिल हो पा रहा। पत्तियां तक नोच-नोचकर खा गये, अब दूर-दूर तक कुछ भी नहीं। ठंड में कुड़कुड़ाते, एक टुकड़ा बेल पर सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट की जंग लड़्ते पेड़ों पर लटकायमान हैं।
उम्र के आखिरी पड़ाव पर चल रही घर की बिल्ली अपने पेट में ठंड लग जाने से परेशान है। सारा दिन कौड़े और चूल्हे के पास बिता रही है। जबतक चचेरे भाई-बहन छोटे थे, तबतक रोज ही उनका गिराया हुआ / उच्छिष्ठ दूध पीने को मिल जाया करता था। आदत इतनी बिगड़ गई कि रोटी-चावल का जायका ही अच्छा न लगे। सुबह पाँच बजे घर का दरवाजा खुलते ही दौड़कर बाहर से सीधे रसोई में.. अपने काम की चीजें ढूंढने में रत। माँ कहती है- "पूर्वजन्म में या तो इस घर की मलिकाईन रही होगी या कोई मुँहलगी कहाईन।" बड़ी बहन के आगे पीछे मँडराया करती। वह भी अम्माँ-बाबूजी की नजरों से बचाकर आलमारी से दूध-दही निकालते वक्त थोड़ा सा जानबूझकर गिरा देती। ग़ज़ब की सेलेक्टिव कंज्यूमर बिलार अगर दो दिन पुराना दही हो तो सूंघकर छोड़ देती। माँ चिढ़कर कहती- "इनके त सजाSव दही चाहीं।" अम्मां को यह लगाव अच्छा नहीं लगता। वे बिल्लियों को धोखेबाज बतातीं। कहती हैं कि कुत्ते में स्वामिभक्ति होती है- "कुकुरा कहेला कि गोसैयां सलामत रहें कि कउरा पाईं, बिलरिया कहे कि गोसैयां आन्हर होखें कि एक्के में खाईं"
विवाह के बाद बहन के ससुराल चले जाने के बाद बिल्ली का यह आखिरी मसीहा भी नहीं रहा। बेहतर भविष्य की तलाश में बिल्ली ने दूसरे घरों की तरफ पलायन किया। लगभग बीस-एक दिन बिल्ली नहीं दिखी। चिंतित होकर माँ ने दूसरे घरों में पता करवाया.. कोई सूचना न मिलने पर उदास मन से सबने यही माना कि उसकी इहलीला समाप्त हुई। लेकिन गाँव भर से मार-दुत्कार खाकर पुन: कंकालशेष बिल्ली वापस आई। और अब ये जाड़ा उसके प्राणों का ग्रहण बना हुआ है। चुल्हे और घर के अन्दर वाले कउड़े से शरीर तापकर किसी तरह जी रही है। हम लोगों के साथ तो बैठी रहती है, लेकिन बाबूजी के बैठने पर दूर हट जाती है। अब यह उनका लिहाज है या उनकी खड़ाऊं का भय, वही जाने।
तो भगवान भुवनभास्कर, बहुत हुई गुंडागर्दी.. अब चाहे पुरानी पार्टी में लौटिये या नई बनाइये। जो भी हो, एक विशाल जनसमूह प्रतीक्षारत है.. आइये, जनसभा को संबोधित कीजिये। किसी पीड़ित आत्मा की पुकार की एक बानगी पेश है-
विवाह के बाद बहन के ससुराल चले जाने के बाद बिल्ली का यह आखिरी मसीहा भी नहीं रहा। बेहतर भविष्य की तलाश में बिल्ली ने दूसरे घरों की तरफ पलायन किया। लगभग बीस-एक दिन बिल्ली नहीं दिखी। चिंतित होकर माँ ने दूसरे घरों में पता करवाया.. कोई सूचना न मिलने पर उदास मन से सबने यही माना कि उसकी इहलीला समाप्त हुई। लेकिन गाँव भर से मार-दुत्कार खाकर पुन: कंकालशेष बिल्ली वापस आई। और अब ये जाड़ा उसके प्राणों का ग्रहण बना हुआ है। चुल्हे और घर के अन्दर वाले कउड़े से शरीर तापकर किसी तरह जी रही है। हम लोगों के साथ तो बैठी रहती है, लेकिन बाबूजी के बैठने पर दूर हट जाती है। अब यह उनका लिहाज है या उनकी खड़ाऊं का भय, वही जाने।
तो भगवान भुवनभास्कर, बहुत हुई गुंडागर्दी.. अब चाहे पुरानी पार्टी में लौटिये या नई बनाइये। जो भी हो, एक विशाल जनसमूह प्रतीक्षारत है.. आइये, जनसभा को संबोधित कीजिये। किसी पीड़ित आत्मा की पुकार की एक बानगी पेश है-
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहा है
मैं क्या कर रहा हूँ तू क्या कर रहा है
कड़ाके की सर्दी है और तू कमीने
जनाजे पे मेरे हवा कर रहा है।
मैं क्या कर रहा हूँ तू क्या कर रहा है
कड़ाके की सर्दी है और तू कमीने
जनाजे पे मेरे हवा कर रहा है।
पुनश्च: बिलार जाड़ा तो खेप गई, लेकिन घर में काम करने वाली मतवा ने एक दिन उद्घोषणा की कि बिलार को दरवाजे पर एक पुआल के ढेर पर ब्रह्मलीन पाया गया।